एत्थावसप्पिणीए चउत्थकालस्स चरिमभागम्मि।
तेत्तीसवासअडमासपण्णरसदिवससेसम्मि।।६८।।
वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुलपडिवाए।
अभिजीणक्खत्तम्मि य उप्पत्ती धम्मतित्थस्स।।६९।।
सावणबहुले पाडिवरुद्दमुहुत्ते सुहोदये रविणो।।
अभिजस्स पढमजोए जुगस्स आदी इमस्स पुढं।।७०।।
जोयणपमाणसंठिदतिरियामरयणुवणिवहपडिबोहो।
मिदुमधुरगभीरतराविसदविसयसयलभासाहिं।।६०।।
अट्ठरस महाभासा खुल्लयभासा वि सत्तसयसंखा।
अक्खरअणक्खरप्पय सण्णीजीवाण सयलभासाओ।।६१।।
एदासिं भासाणं तालुवदंतोट्ठकंठवावारं।
परिहरिय एक्ककालं भव्वजणाणंदकरभासो३।।६२।।
मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुंदकुंदाद्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्।।१।।
बुद्धि तवो विय लद्धी, विउव्वणलद्धी तहेव ओसहिया।
रस-वल-अक्सीणा वि य, लद्धीओ सत्त पण्णत्ता१।।
बुद्धि-तव-विउवणोसहि-रस-बल-अक्खीण-सुरसरत्तादी।
ओहि-मणपज्जवेहि य, हवंति गणबालया सहिया।
‘‘धर्मद्वयं त्रिविधकालसमग्रकर्म, षड्द्रव्यकायसहिता: समयैश्च लेश्या:।
तत्त्वानि संयमगती सहितं पदार्थै-रंगप्रवेदमनिशं वद चास्तिकायं।।’’