तर्ज—कौन दिशा में……
वीरा मुक्तिपथ में, मिले जो मुझे कांटे-२ उन्हें फूल बना दो,
अनुकूल बना दो, मेरे वीरा हो, महावीरा हो।।टेक.।।
सोच लिया जब वीरा तेरे, चरणों की रज लेना है।
तुझको पाने हेतु प्रभो! चाहे, कुछ भी पड़े मुझे देना है।।
कुण्डलपुर है जन्म नगरिया, तभी वहाँ हम जाते।। वीरा……।।१।।
तुमने अपने पथ के शूलों, को भी फूल बनाया था।
राजसुखों को छोड़ सभी, कांटों का पथ अपनाया था।।
बालयति बन ध्यान किया वन, में तुमने प्रभु जाके। वीरा……।।२।।
मुझको भी इस नश्वर तन से, अविनश्वर पद पाना है।
इस चंचल दानव मन में, निश्चल प्रभु तुझे बिठाना है।।
यही ‘‘चन्दनामति” आशा ले, हम तेरे गुण गाते। वीरा……।।३।।