तर्ज—कभी प्यासे को पानी……
वीर की जन्मभूमि सजाई नहीं, जन्म उत्सव मनाना सफल क्या रहा ?
अपनी निधियाँ अगर हमने पाई नहीं, तो महोत्सव मनाने का फल क्या रहा ?।। टेक.।।
हमने इतिहासकारों की बातें सुनीं, आधुनिक बातें सुन एक चिन्तन जगा।
शास्त्र की सच्ची बातें बताई नहीं, उनको ही दोष देने का फल क्या रहा ?।।
वीर की जन्मभूमि सजाई नहीं, जन्म उत्सव मनाना सफल क्या रहा ?
अपनी निधियाँ अगर हमने पाई नहीं……।।१।।
हमने कुण्डलपुरी की परिस्थिति सुनी, उससे अन्तर्हृदय मानो रोने लगा।
वहाँ हमने जयंती मनाई नहीं, उनकी जयकार करने का फल क्या रहा ?
वीर की जन्मभूमि सजाई नहीं, जन्म उत्सव मनाना सफल क्या रहा ?
अपनी निधियाँ अगर हमने पाई नहीं……।।२।।
दो चरण ज्ञानमति जी के जब चल पड़े, कोटि पग फिर तो उस ओर ही चल पड़े।
‘‘चन्दनामति” बजी अब बधाई वहीं, जन्म उत्सव मनाना सफल हो गया।।
वीर की जन्मभूमि सजाई नहीं। जन्म उत्सव मनाना सफल क्या रहा ?
अपनी निधियाँ अगर हमने पाई नहीं……।।३।।