अथर्ववेद में कहा है-
‘‘अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्यमयकोष: स्वर्गज्योतिषावृत:।।
यह अयोध्या देवताओं की नगरी है, यह आठ चक्र और नवद्वारों से शोभित है। इसका स्वर्ग के समान हिरण्यमय कोष दिव्य ज्योति से आवृत-व्याप्त है।
रुद्रयामल ग्रंथ के अनुसार यदि अवन्तिकापुरी विष्णु भगवान का चरण है, कांची कटिभाग है, द्वारिका नाभि है, मायापुरी हृदय है, मथुरा ग्रीवामूल है, वाराणसी नासिका है तो अयोध्या उन विष्णु भगवान का मस्तक ही है विशिष्ट संहिता में समस्त लोकों द्वारा वंदित इस साकेत नगरी को चिन्मया, हिरण्या, जया, अयोध्या, नंदिनी, सत्या, राजिता और अपराजिता ऐसे आठ नाम गिनाये हैं।
एतद् ब्रह्मविदो वदन्ति मुनयोऽयोध्यापुरी मस्तकम्।
बाल्मीकि रामायण (बालकाण्ड) में लिखा है-
कोशलो नाम विदित: स्फीतो जनपदो महान्।
विविष्ट: सरयूतीरे, प्रभूत धन-धान्यवान्।।
अयोध्या मानवेन्द्रेण, पुरवै निर्मिता स्वयम्।।
आयता दश च द्वे च, योजनानि महापुरी।
श्रीमती त्रीणि विस्तीर्णा, नानासंस्थानशोभिता।।
(बाल्मीकि रामायण)
‘सरयू नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ कोशल देश है। उसकी अयोध्या नाम की महानगरी है। इसका मनु ने स्वयं निर्माण किया था, यह बारह योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी।