जो कुमार्ग में स्थित हैं, दूषित आचरण करने वाले हैं, सम्पत्ति में अत्यंत रूप से आसक्त हैं, बिना इच्छा के विषयों से विरक्त हैं, अकाम निर्जरा करने वाले हैं, अग्नि आदि के द्वारा मरण को प्राप्त करते हैं, संयम लेकर उसे मलिन करते हैं या विनाश करते हैं, सम्यक्त्व से शून्य हैं, पंचाग्नि तप आदि करके मंद कषायी हैं, ऐसे कर्मभूमियाँ मनुष्य या तिर्यंच इन व्यंतर देवों की पर्याय में जन्म लेते हैं। भोग भूमिया जीव भी मरकर भावन, व्यंतर और ज्योतिष्क देवों में जन्म लेते हैं।
इस देव पर्याय से च्युत होकर सम्यक्त्व से सहित देव उत्तम मनुष्य पर्याय प्राप्त करते हैं। जो सम्यक्त्व से शून्य ही मरण करते हैं वे देव कर्मभूमि के मनुष्य या पंचेन्द्रिय, सैनी, पर्याप्तक तिर्यंचों में जन्म लेते हैं। कदाचित् विषयों की अत्यासक्ति के कारण मरने के ६ महीने पहले से विलाप और संताप करते हुए मरकर एकेन्द्रिय पर्याय में पृथ्वीकायिक, जलकायिक और प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव भी हो जाते हैं।