बुरी आदतों को व्यसन कहते हैं। व्यसन सात होते हैं-१. जुआ खेलना २. मांस खाना ३. शराब पीना ४. शिकार करना ५. वेश्या गमन करना ६. चोरी करना ७. परस्त्री सेवन करना।
कथा-एक ठाकुर थे। एक दिन दो सेव लाकर उन्होंने अपने नौकर को दिये और कहा-इन्हें छीलकर लाओ, मेरे मित्र भंडारी जी आने वाले हैं, हम साथ में खायेंगे।’’
नौकर नियत का कच्चा था। जीभ को काबू में न रख सका, वह सेव काटता जाता और उसे खाता जाता। सेव इतना स्वादिष्ट था कि नौकर को मालूम ही नहीं पड़ा कि कब वह दोनों सेव चट कर गया, ऐसा व्यसन उसके अंदर था।
ठाकुर ने पुकारा तो घबरा कर बाहर निकला और बोला, ‘‘चाकू खराब है, नये चाकुओं का थैला ले आता हूँ, कोई तेज चाकू निकाल दीजिए, तो सब को आसानी से छीलकर काट सवूँâ’’।
ठाकुर के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर ही नौकर नए चाकुओं का थैला ले आया और ठाकुर के सामने रख दिया।ठाकुर ने थैले में भरे चाकुओं को जमीन पर पैâलाया और एक-एक चाकू उठाकर वह उसकी धार जाँचने लगा। इसी बीच नौकर को भंडारी दरवाजे में घुसता नजर आया। वह दौड़कर उसके पास पहुँचा और कान में बोला, ‘‘हुजूर! ठाकुर ने आज बहुत सारी शराब पी ली है। आपको बेहद गालियाँ बक रहा है और मुझसे कहा रहा है कि भंडारी को पकड़ कर रखना, मैं आज उसके दोनों कान काटूँगा। हुजूर यकीन न हो तो इस खिड़की में से झांक कर देख लीजिए, वह आपके लिए तेज से तेज चाकू तलाश कर रहा है।’’
भंडारी ने खिड़की में से झांका तो उसके प्राण सूख गए, सचमुच ठाकुर चाकुओं को उलट-पलट रहा था। वह सर पर पैर रखकर भागा। इधर नौकर की बुद्धि ने दूसरा पैंतरा बदला। उसने ठाकुर से कहा, ‘‘हुजूर भंडारी जी आपके दोनों सेव ले भागे हैं। आज की तरह तो नशे में मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था।’’ठाकुर ने भंडारी को भागते देखा तो उसे समझाने के लिए वह भी उसके पीछे भागा। भंडारी ने मुड़कर देखा तो उसके रहे सहे होश भी उड़ गये, उसने देखा कि ठाकुर के हाथ में तीन-चार चाकू हैं और वह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है, ‘‘भंडारी जी, दो नहीं तो एक ही देते जाओ।’’
ठाकुर का मतलब था कि दोनों सेब क्यों ले जाते हो, कम से कम एक तो मुझे देते जाओ किन्तु भंडारी के भयग्रस्त मानस ने समझा कि ठाकुर अब मेरा एक कान काटकर ही संतोष कर लेना चाहता है। वह और तेजी से भागा। आगे ठाकुर, पीछे भंडारी। नौकर खुशी में नाच-नाच कर अपनी पीठ थपथपाने लगा।मनुष्य का मन जब चोर बन जाता है तो उसकी गति-मति भी इस कहानी के नौकर की सी हो जाती है। सच्चाई से बचने के लिए बहानों के सैकड़ों भूत खड़े कर दिये जाते हैं। मनुष्य से ही मनुष्य को नहीं, कभी-कभी तो राष्ट्र से भी राष्ट्रों को लड़ा दिया जाता है। अपनी कलई न खुले इसके लिए कितने ही दिलों में जहर घोल दिया जाता है। अपनी कटी नाक को शुभ ठहराने के लिए कितनों की नाकें तराश दी जाती हैं।
इस प्रकार यह व्यसन अपने मन का भ्रम, पूर्वागृह बनकर न जाने कितने अनर्थों और पापों को जन्म देता है, बढ़ाता है, इसी पर एक दृष्टांत और है। एक दुरात्मा था, वह सदा गुरु के पास जाता और पूछता-मेरी गलती वैâसे छूटे? एक दिन गुरु हस्तरेखा देखकर बोले-अब तेरी मात्र एक माह की आयु रह गई है। दुरात्मा चिंता में डूब गया। एक माह दु:खमय और भजन में लगा रहा। भविष्य में होने वाली मृत्यु ही मस्तिक पर छाई रही। जब एक माह में एक दिन बाकी रहा, तब गुरुदेव ने उसे फिर बुलाया और पूछा-इस महीने में कितनी बार गलती हुई, कितनी बार पाप किये, उत्तर मिला-एक बार भी नहीं, चित्त पर तो हर समय मृत्यु भय छाया रहा। कहा भी है-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलियो कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।।
इस प्रकार व्यसन की परिभाषा जानने के बाद अब आप सात व्यसनों में से क्रम-क्रम से एक-एक व्यसन के बारे में पढ़ें-