सग्गं तवेण सव्वो वि पावए तह वि झाणजोएण। जो पावइ सो पावइ परलोए सासयं सोक्खं।। अइसोहणजोएणं सुद्धं हेमं हवेइ जह तह य। कालाईलद्धीए अप्पा परमप्पओ हवदि। वरवयतवेहिं सग्गो मा दुक्खं होउ निरइ इयरेहिं। छायातवट्ठियाणं पडिवालंताण गुरु भेयं।।
तप से स्वर्ग सभी प्राप्त करते हैं, पर जो ध्यान से स्वर्ग प्राप्त करता है उसका स्वर्ग प्राप्त करना कहलाता है, ऐसा जीव परभव शाश्वत-मोक्ष सुख को प्राप्त कर लेता है। जिस प्रकार अत्यन्त शुभ सामग्री से-शोधन सामग्री से अथवा सुहागा से सुवर्ण शुद्ध हो जाता है उसी प्रकार काल आदि लब्धियों से आत्मा परमात्मा हो जाता है। व्रत और तप के द्वारा स्वर्ग का प्राप्त होना अच्छा है किन्तु अव्रत और अतप के द्वारा नरक के दु:ख प्राप्त होना अच्छा नहीं है क्योंकि छाया और घाम में बैठ कर इष्ट स्थान की प्रतीक्षा करने वालों में बहुत ही अंतर है।