‘अभीष्टं फलमाप्नोति व्रतवान् परजन्मनि ”
न व्रतादपरो बन्धु्र्नाव्रतादपरो रिपुः””३७४-पर्व76″”
व्रत धारण करने वाला जीव आगामी भव में अभीष्ट फल को प्राप्त करता है”व्रत से बढ़कर जीव का कोई दूसरा बन्धु नहीं है तथा व्रतरहित अवस्था से बढ़कर जीव का कोई शत्रु नहीं है”[उत्तरपुराण]