तर्ज—इक परदेशी……
शरदपूर्णिमा की आज, तिथि आ गई, मेरे घर में मैना जैसी, पुत्री आ गई।
देखते ही देखते, उजियारी छा गई, मोहिनी माँ गोदी में, इक देवी पा गई।। टेक.।।
दादी ने आकर, दे दी बलइयाँ, बोली पहला पूल है, गाओ जी बधाइयाँ।
देखते ही देखते, उजियारी छा गई, मेरे घर में मैना जैसी, पुत्री आ गई।।१।।
सारे कुटुम्बियों ने, पाला खुशी से, नगरी में हो गया, उजाला तभी से।
देखते ही देखते, उजियारी छा गई, मोहिनी माँ गोदी में, इक देवी पा गई।।२।।
वैराग्य हो गया तो, माता ये बन गई, शास्त्रों के अध्ययन से, ध्याता ये बन गई।
माता ज्ञानमती की, जयंती आ गई, मेरे घर में चांदनी, बसंती छा गई।।३।।