हस्तिनापुर नगरी में जन्में त्रय पदवी धारी भगवान् शांतिनाथ ने राज्यवैभव अथवा सिद्धपद की प्राप्ति मात्र १ ही भव में नहीं की अपितु ११ भव पूर्व से ही उन्होंने अपनी आत्मा को परमात्मा बनाने का पुरुषार्थ किया तब १२वें भव में वे तीर्थंकर शांतिनाथ कहलाये |
प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने उन्हीं भगवान शांतिनाथ के सम्पूर्ण जीवनवृत्त को अत्यंत सरल भाषा में प्रस्तुत किया है जिसका स्वाध्याय कर प्राणी अपनी आत्मा को समुन्नत बनाने का पुरुषार्थ कर सकता है |