इस व्रत में ३६ व्रत व मंत्र हैं। उत्कृष्ट व्रत करने वालों के लिये उपवास है। मध्यमव्रत करने में एक बार अल्पाहार व जघन्य व्रत में दिन में एक बार शुद्ध भोजन—एकाशन है। व्रत के दिन भगवान शांतिनाथ का या किन्हीं भी तीर्थंकर प्रतिमा का अभिषेक करके शांतिनाथ समवसरण पूजा या शांतिनाथ पूजा करें। दिन में तीनों काल में तीन बार व्रत के मंत्र का जाप्य करें अथवा एक समुच्चय जाप्य करके व्रत के मंत्र की एक जाप्य करें। श्री शांतिनाथ का संक्षिप्त चरित पढ़ें।
इस व्रत को अष्टमी, चतुर्दशी आदि किसी भी तिथि में कर सकते हैं।
व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन में भगवान शांतिनाथ की छोटी या बड़ी प्रतिमा प्रतिष्ठित करावें। भगवान शांतिनाथ की जन्मभूमि व केवलज्ञानभूमि हस्तिनापुर तथा निर्वाण भूमि सम्मेदशिखर की वंदना करें। यदि इतनी शक्ति न हो, तो यथाशक्ति उद्यापन करें। उद्यापन में शांतिनाथ समवसरण विधान या शांतिविधान अवश्य करें।
इस व्रत के करने से निश्चित ही विदेहक्षेत्र में विराजमान श्री सीमंधर भगवान के समवसरण के दर्शन का लाभ मिलेगा। परम्परा से अपनी आत्मा में केवलज्ञान प्रगट कर परमात्मा बनने का अवसर प्राप्त होगा। तत्काल में सर्वरोग, शोक आदि का अभाव होकर धन, सुख, शांति की प्राप्ति होगी तथा अंत में आत्यंतिक शांति—निर्वाण की प्राप्ति निश्चित है।