
हे शांतिजिन! तुम शांति के, दाता जगत विख्यात हो।
चिरकाल से बहुप्यास लागी, नाथ! अब तक ना बुझी। 


बहुबार मैं जन्मा मरा, अब तक न पाया पार है।


यह भूख व्याधी पिंड लागी, किस विधी मैं छूटहूँ। 




फल मोक्ष की अभिलाष लागी, किस तरह अब पूर्ण हो।






हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।