१.१ संसार सागर को स्वयं पार करने वाले और दूसरों को पार करने का मार्ग बताने वाले तथा धर्म तीर्थ के प्रवर्तक महापुरुष तीर्थंकर कहलाते हैं। ये स्वयं तो मोक्ष प्राप्त करते ही हैं, अन्यों को भी मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताते हैं। तीर्थंकर बनने के संस्कार १६ कारण भावनाओं के भाने से उत्पन्न होते हैं। मनुष्य भव में किसी तीर्थंकर या केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में ही ऐसा होता है। ऐसे व्यक्ति प्राय: देवगति में जाते हैं। यदि पूर्व में नरकायु का बन्ध हुआ है तो वह जीव केवल प्रथम नरक तक में ही जन्म लेता है और बाद के भव में मनुष्य गति से तीर्थंकर बनकर वह मुक्ति को प्राप्त होता है। इस प्रकार देव व नरक गति का जीव ही अगले भव में तीर्थंकर बनता है। मनुष्य या तिर्यंच गति का जीव अगले भव में तीर्थंकर नहीं बनता है।
चार घातिया कर्मों के क्षय होने से जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है, उन्हें केवली कहते हैं। इन्हें अरहन्त भी कहते हैं। इन्हें तीनों लोकों और तीनों कालों के समस्त पदार्थों का एक साथ ज्ञान होता है। सभी केवलियों का शरीर केवलज्ञान होने पर परमौदारिक अर्थात् निगोद जीवों से रहित हो जाता है और पृथ्वी से ५००० धनुष ऊँचा चला जाता है।
सभी केवलियों की २ अवस्थाएँ होती हैं-सयोगकेवली और अयोगकेवली।
१) सयोग केवली (Sayog Kevali-Omniscient having Vibrations)- जब तक केवली भगवान विहार और उपदेश आदि क्रियाएँ करते रहते हैं और तीनों योगों (मन, वचन व काय) से युक्त होते हैं, वे सयोग केवली कहे जाते हैं। ये १३ वें गुणस्थानवर्ती होते हैं।
(२) अयोग केवली (Ayog Kevali-Omniscient without Vibrations)- आयु के अंतिम समय में जब केवली उपदेश व विहार आदि क्रियाओं का त्याग कर देते हैं और योग से रहित हो जाते हैं, तब इन्हें अयोग केवली कहते हैं। इनका गुणस्थान १४ वां है।
१. तीर्थंकर केवली (Teerthankar Omniscient)- तीर्थंकर प्रकृति नामकर्म वाले तथा साक्षात् उपदेश आदि के द्वारा धर्म की प्रभावना करने वाले तीर्थंकर केवली कहलाते हैं। जैसे भगवान महावीर आदि। इनके गणधर होते हैं और देवों द्वारा इनके समवसरण की रचना की जाती है। इनके ५, ३ अथवा २ कल्याणक होते हैं।
२. सामान्य केवली (General Omniscient)- तीर्थंकर केवली के अतिरिक्त अन्य केवली सामान्य केवली कहलाते हैं।
३. सातिशय केवली (Omniscient with Excellences)- तीर्थंकर प्रकृति रहित, २५ अतिशय (१० केवलज्ञान, १४ देवकृत तथा १ वज्रवृषभ-नाराच संहनन), प्रातिहार्य, गन्धकुटी और अनन्त चतुष्टय सहित केवली को सातिशय केवली (गन्धकुटी युक्त केवली) कहते हैं।
४. मूक-केवली (Silent Omniscient)- जिनकी वाणी नहीं खिरती है।
५. उपसर्ग-केवली (Omniscient after bearing Infliction)- जो संयम धारण करने के पश्चात् उपसर्ग सहन करते हुए घातियाँ कर्मों को जीतकर केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। जैसे -देशभूषण केवली, कुलभूषण केवली।
६. अन्तकृत् केवली (Omniscient, who gets Salvated within 48 minutes)- जो भीषण उपसर्गों को जीतकर केवलज्ञान प्राप्ति के अन्तर्मुहूर्त पश्चात् ही सम्पूर्ण कर्मों का अन्त कर लेते हैं अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। जैसे सुकौशल मुनि। महावीर भगवान के तीर्थ में नमि, मतंग, सुदर्शन आदि ऐसे १० केवली हुए हैं।
७. अनुबद्ध-केवली(Serially-Linked Omniscients)- एक केवली के मोक्ष जाते ही तुरन्त पश्चात् दूसरे को केवलज्ञान होने पर वह दूसरा केवली अनुबद्ध केवली कहलाता है। महावीर स्वामी के बाद तीन अनुबद्ध केवली हुए हैंः- (१) इन्द्रभूति (गौतम गोत्रीय), (२) सुधर्म स्वामी और (३) जम्बू स्वामी।
अभी तक अनन्त जीवों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। महावीर स्वामी के पश्चात् ३ अनुबद्ध केवली और ५ अन्य केवली हुए हैं। वर्तमान अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम केवलज्ञान आदिनाथ भगवान को हुआ था जो कैलाश पर्वत से मोक्ष गये तथा अंतिम केवली का नाम श्रीधर है जो कुण्डलगिरि से मोक्ष गये।
तीर्थंकर और केवली में मुख्यतया निम्न अन्तर हैंः-
१. सभी तीर्थंकर केवली होते हैं, किन्तु सभी केवली तीर्थंकर नहीं होते हैं।
२. भगवान बनने के लिये केवली होना आवश्यक है, तीर्थंकर नहीं।
३. एक काल में २४ तीर्थंकर होते हैं जबकि केवली अनेक हो सकते हैं।
४. एक समय में एक ही तीर्थंकर होता है जबकि केवली अनेक हो सकते हैं।
५. सभी तीर्थंकरों की वाणी खिरती है, जबकि कुछ केवलियों की वाणी नहीं खिरती है।
६. निम्न बातें तीर्थंकरों के होती हैं, किन्तु केवलियों के नहीं होती हैंः-
(१) तीर्थंकर की माता को १६ स्वप्न आते हैं।
(२) तीर्थंकर को जन्म से ही मति, श्रुत और अवधि ज्ञान होता है।
(३) तीर्थंकर के जन्म के १० अतिशय होते हैं।
(४) तीर्थंकर अपने माता-पिता की अकेली संतान होते हैं।
(५) तीर्थंकरों को दीक्षा लेते ही मनःपर्यय ज्ञान हो जाता है।
(६) तीर्थंकरों के समवसरण की रचना होती है।
(७) तीर्थंकरों के गणधर होते हैं।
(८) तीर्थंकरों के कल्याणक होते हैं और देव इन्हें मनाते हैं।
(९) तीर्थंकरों के चिन्ह होते हैं।
प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं। सभी तीर्थंकरों की देशना एक सी होती है। उनके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष के अवसर पर देवतागण महान उत्सव मनाते हैं। इन पांचों उत्सवों को पंच-कल्याणक कहते हैं।
प्रत्येक तीर्थंकर के जीवन काल में पांच प्रसिद्ध घटनाओं (गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष) के अवसर आते हैं जिन पर देव विशेष उत्सव मनाते हैं। देव स्वर्ग से चलकर मध्य-लोक में आते हैं। देव अपने मूल शरीर से कहीं नहीं जाते हैं, सभी कार्यों में उनका उत्तर (वैक्रियिक) शरीर ही आता है। मगर १६ स्वर्गों से ऊपर के अहमिन्द्र देव नहीं आते हैं क्योंकि इनका मध्यलोक में आवागमन नहीं है। ये पांचों अवसर जगत के लिये अत्यन्त कल्याणकारी होते हैं, अत: इनको कल्याणक कहते हैं।
भरत व ऐरावत क्षेत्रों में होने वाले तीर्थंकरों के ५ कल्याणक होते हैं जबकि विदेह क्षेत्र में होने वाले तीर्थंकरों के
५, ३ अथवा २ कल्याणक होते हैं। विदेह क्षेत्र में जो मनुष्य पूर्व भव से तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लेते हैं, उनके पांच कल्याणक होते हैं किन्तु जो गृहस्थ अवस्था में तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करते हैं, उनके तप, ज्ञान और मोक्ष तीन कल्याणक होते हैं। जो मनुष्य मुनि अवस्था में तीर्थंकर प्रकृति का बंध करता है, उसके ज्ञान व मोक्ष नामक केवल दो कल्याणक ही होते हैं।
चूँकि इस पंचमकाल में तीर्थंकर नहीं होते हैं, अत: हम प्रत्यक्ष रूप से ‘‘कल्याणक’’ नहीं देख सकते हैं, फिर भी नवनिर्मित जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा करने के लिये जो पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव किये जाते हैं उन्हें हम देख सकते हैं। ये महोत्सव उन्हीं प्रधान पांच कल्याणकों की सत्य प्रतिलिपि है जिसके द्वारा प्रतिमा में तीर्थंकरत्व की स्थापना की जाती है।
इन पांच कल्याणकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
(१) गर्भकल्याणक (Garbhkalyanak, Auspicious Event of Conception)-सौधर्म इन्द्र अपने अवधिज्ञान से यह जान लेता है कि तीर्थंकर का गर्भावतरण होने वाला है। भगवान के गर्भ में आने से ६ माह पूर्व से जन्म तक (अर्थात् १५ माह तक) कुबेर द्वारा प्रतिदिन चार बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा की जाती है जिन्हें याचक स्वतंत्रतापूर्वक ले जाते हैं। गर्भ वाले दिन माता को १६ स्वप्न आते हैं। जिस पर भगवान का अवतरण निश्चित मानकर माता-पिता प्रसन्न होते हैं। गर्भावतरण को जानकर सौधर्म इन्द्र व देव स्वर्ग से चलकर धरती पर आते हैं और उत्सव मनाते हैं। तत्पश्चात् सौधर्म इन्द्र दिक्कुमारी देवियों को जिनमाता की सेवा में नियुक्त कर माता-पिता को भेंट आदि दे करके वापस स्वर्ग को लौट जाता है। दिक्कुमारियाँ माता की परिचर्या करती हैं। गर्भ अवस्था में माता को तनिक भी कष्ट नहीं होता है।
(२) जन्म कल्याणक (Janmkalyanak, Auspicious Event of Birth)- तीर्थंकर के जन्म के उत्सव को जन्म कल्याणक कहते हैं। तीर्थंकर का जन्म होने पर चारों निकायों के देवों के भवनों में उनके अपने वाद्य यंत्र (घंटा, दुंदुभि आदि) स्वयं बजने लगते हैं और सौधर्म इन्द्र का आसन कम्पायमान होता है जिससे उन्हें तीर्थंकर का जन्म होना निश्चित हो जाता है। सौधर्म इन्द्र अपनी इन्द्राणी (शची) सहित एक लाख योजन प्रमाण ऐरावत हाथी पर बैठ कर चारों प्रकार के असंख्यात देवों के साथ भूमि पर आता है और साथ में साढ़े बारह करोड़ जाति के वाद्य यंत्रों की मीठी ध्वनि, देवों द्वारा जय-जयकार की ध्वनि आदि होती है। सौधर्म इन्द्र अपनी इन्द्राणी (शची) को प्रसूति-गृह में भेजकर बालक को मंगवाते हैं। शची वहाँ पर तीर्थंकर की माता को मायामयी निद्रा में सुलाकर तीर्थंकर बालक को ले आती है और उसके स्थान पर माया-बालक को रख देती है। तीर्थंकर बालक को देखकर तृप्ति नहीं होने से इन्द्र अपने हजार नेत्र बनाकर बालक को निहारता है। पुन: वह तीर्थंकर बालक को लेकर इन्द्र सुमेरु पर्वत पर जाता है और वहाँ उनका पाण्डुक शिला पर १००८ कलशों द्वारा अभिषेक करता है। अभिषेक हेतु जल क्षीर सागर से देवता पंक्तिबद्ध होकर लाते हैं। यह जल दूध के समान श्वेत और त्रसजीव रहित होता है।
बालक (तीर्थंकर) के दाहिने पैर के अंगूठे में स्थित चिन्ह को देखकर सौधर्म इन्द्र इसे ही तीर्थंकर का चिन्ह निश्चित करता है। यही चिन्ह तीर्थंकर की प्रतिमा पर अंकित किया जाता है। सौधर्मइन्द्र बालक के अँगूठे में अमृत भर देता है और ताण्डव नृत्य आदि अनेक मायामयी लीलाएँ करता है। तत्पश्चात् बालक को वस्त्र-आभूषण से सजाकर वापस प्रसूतिगृह में पहँुचाकर इन्द्र आदि देव तीर्थंकर के माता-पिता की भक्ति कर वस्त्र-आभूषण आदि भेंट कर उन्हें प्रणाम कर वापस देवलोक लौट जाते हैं। दीक्षा लेने तक तीर्थंकर के लिये वस्त्र, आभूषण, भोजन आदि सामग्री प्रतिदिन स्वर्ग से देवों द्वारा लायी जाती है।
(३) तप कल्याणक (Tapkalyank, Auspicious Event of Initiation)- कुछ दिन राज्य आदि विभूति का उपभोग कर किसी कारणवश तीर्थंकर को वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता है। उस समय ब्रह्म स्वर्ग से लौकान्तिक देव आकर तीर्थंकर के वैराग्य की प्रशंसा करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं।
कुबेर द्वारा निर्मित पालकी में तीर्थंकर को बैठाकर तपोवन को ले जाते हैं। पालकी को ७-७ कदम की दूरी तक मनुष्य और विद्याधर ले जाते हैं और बाद में देवता प्ाालकी को आकाश मार्ग से ले जाते हैं। तपोवन में पहुंचकर तीर्थंकर वस्त्र-आभूषण आदि त्याग देते हैं और ‘‘नम: सिद्धेभ्य:’’ बोलकर पंचमुष्टि केश-लोंच करते हैं। इन्द्र इन केशों को रत्न-पिटारे में ले जाकर क्षीरसागर में क्षेपण करता है। तीर्थंकर स्वयं दीक्षा ले लेते हैं क्योंकि उनके कोई गुरु नहीं होता है और वे स्वयं जगद्गुरु हैं। नियम लेकर आहार के लिये नगर में जाते हैं और आहार देने वाले के यहाँ पंचाश्चर्य प्रकट होते हैं। जैन साधु देवताओं से आहार ग्रहण नहीं करते हैं क्योंकि वे मनुष्यों की भाँति संयम धारण नहीं कर सकते हैं।
पंचाश्चर्य (Showering of Five Wonderful Things)- तीर्थंकर के आहार पर देवताओं के द्वारा आहारदाता के यहाँ ५ आश्चर्ययुक्त कार्य किये जाते हैं । ये कार्य हैं-
(१) रत्नों की वृष्टि होना
(२) दुन्दुभि-बाजे बजना
(३) मन्द-सुगन्धित पवन चलना
(४) जय-जयकार की ध्वनि होना और
(५) आकाश से पुष्पों की वर्षा होना।
(४) ज्ञान कल्याणक (Gyankalyanak, Auspicious Event of Omniscience)- तपस्या करते हुए तीर्थंकर शुक्लध्यान में स्थिर होकर चार घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान आदि चतुष्टय लक्ष्मी प्राप्त करते हैं। उनका शरीर भूतल से ५००० धनुष ऊँचा चला जाता है और सिंहासन, भामण्डल, छत्र आदि आठ प्रातिहार्य प्रकट होते हैं। केवलज्ञान होने पर १० अतिशय होते हैं और देवताओं द्वारा १४ अतिशय किये जाते हैं।
तीर्थंकर को केवलज्ञान होने पर इन्द्र की आज्ञा से कुबेर समवसरण की रचना करता है। भगवान का जब विहार होता है तो भगवान के चरणों के नीचे देव स्वर्णकमलों की रचना करते हैं और भगवान इनको स्पर्श नहीं करते हुए आकाश मार्ग में ही चलते हैं।
(५) निर्वाण (मोक्ष) कल्याणक (Nirvan Or Mokshakalyanak, Auspicious Event of Salvation)- जब तीर्थंकर की आयु पूर्ण होने वाली होती है, तब उनका समवसरण विघटित हो जाता है और वे योग-निरोध द्वारा ध्यान में निश्चलता कर शेष चार अघातिया कर्मों का भी नाश कर देते हैं व निर्वाण धाम को प्राप्त होते हैं अर्थात् लोक के अग्र भाग में सिद्धालय में विराजमान हो जाते हैं। अरहन्त भगवान के शरीर छूटने को पंडित-पंडित मरण की संज्ञा है, उसे निर्वाण अथवा मोक्ष भी कहते हैं। देव निर्वाण कल्याणक की पूजा करते हैं। वृषभदेव, वासुपूज्य और नेमिनाथ भगवान पद्मासन से मोक्ष गये हैं। शेष २१ तीर्थंकर खड्गासन से मोक्ष गये हैं।
तीर्थंकरों के मूँछ-दाढ़ी नहीं होती हैं किन्तु सिर पर बाल होते हैं। केवलज्ञान होने पर इनके नख और केशों में वृद्धि नहीं होती है। तीर्थंकरों का शरीर अशुद्ध धातु रहित होता है और केवलज्ञान होने पर परमौदारिक (निगोदिया जीवों से रहित) हो जाता है। केवलज्ञान से पूर्व तक इनके आहार तो होता है, किन्तु निहार (मल-मूत्र) नहीं होता है। इनके नेत्र सदा आधे खुले हुए रहते हैं और ये पलक नहीं झपकाते हैं। ये जन्म से ही तीन ज्ञान (मति, श्रुत और अवधि) के धारी होते हैं। दीक्षा लेने पर इन्हें मनःपर्ययज्ञान और चारों घातिया कर्मों का नाश करने पर केवलज्ञान हो जाता है।
जन्म के समय सौधर्म इन्द्र इन्हें पाण्डुक शिला पर ले जाकर महोत्सवपूर्वक इनका अभिषेक करता है। इन्द्रादि देव इनकी पूजा १००८ नामों से करते हैं। तीर्थंकर अपनी माता की अकेली सन्तान होते हैं। ये माता का दूध नहीं पीते हैं, अपितु अपने हाथ के अँगूठे (अमृतमयी) को चूसते हैं। इनके खाने की वस्तुएँ और वस्त्र आदि भी देव लाते हैं। ये सिद्ध के अलावा किसी को प्रणाम नहीं करते हैं। इनका कोई गुरु नहीं होता है। ये स्वयं ही दीक्षा ले लेते हैं। किसी को दीक्षा देते भी नहीं हैं। दीक्षा लेकर अपनी मुनि अवस्था के दौरान मौन रहते हैं।
भरत क्षेत्र में प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के कल्पकाल में २४-२४ तीर्थंकर होते हैं। वैसे तो अभी तक अनन्त कल्पकाल (अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी) बीत चुके हैं और इनमें अनन्त तीर्थंकर हो चुके हैं, फिर भी व्यवहार में भूत, वर्तमान व भविष्य-कालीन २४-२४ तीर्थंकर कहे गये हैं।
वर्तमान में चल रहे अवसर्पिणी काल से पूर्व उत्सर्पिणी के कल्पकाल में जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में जो २४ तीर्थंकर हुए, वे भूतकालीन २४ तीर्थंकर कहलाते हैं। इनके नाम निम्न प्रकार है-
(१) श्री निर्वाणनाथ | (९) श्री अंगिरनाथ | (१७) श्री विमलेश्वरनाथ |
(२) श्री सागरनाथ | (१०) श्री सन्मतिनाथ | (१८) श्री यशोधरनाथ |
(३) श्री महासाधुनाथ | (११) श्री सिंधुनाथ | (१९) श्री कृष्णमतिनाथ |
(४) श्री विमल प्रभनाथ | (१२) श्री कुसुमांजलिनाथ | (२०) श्री ज्ञानमतिनाथ |
(५) श्री धरनाथ | (१३) श्री शिवगणनाथ | (२१) श्री शुद्धमतिनाथ |
(६) श्री सुदत्तनाथ | (१४) श्री उत्साहनाथ | (२२) श्री भद्रनाथ |
(७) श्री अमलप्रभनाथ | (१५) श्री ज्ञानेश्वरनाथ | (२३) श्री अतिक्रांतनाथ |
(८) श्री उद्धरनाथ | (१६) श्री परमेश्वरनाथ | (२४) श्री शांतनाथ |
अभी अवसर्पिणी काल का पांचवां काल चल रहा है। अतः इस काल में कोई तीर्थंकर अब नहीं होगा। आगामी उत्सर्पिणी काल के तृतीय काल में २४ तीर्थंकर होंगे। राजा श्रेणिक का जीव महापद्म नामक प्रथम तीर्थंकर बनेगा। भविष्य में होने वाले २४ तीर्थंकरों के नाम निम्न हैं-
(१) श्री महापद्मनाथ | (९) श्री प्रौष्ठिल्यनाथ | (१७) श्री चित्रगुप्तनाथ |
(२) श्री सुरदेवनाथ | (१०) श्री जय कीर्ति नाथ | (१८) श्री समाधिगुप्तनाथ |
(३) श्री सुपार्श्वनाथ | (११) श्री मुनिसुव्रतनाथ | (१९) श्री स्वयंभूनाथ |
(४) श्री स्वयंप्रभनाथ | (१२) श्री अरनाथ | (२०) श्री अनिवर्तकनाथ |
(५) श्री सर्वात्मभूतनाथ | (१३) श्री निष्पापनाथ | (२१) श्री जयनाथ |
(६) श्री देवपुत्रनाथ | (१४) श्री निष्कषायनाथ | (२२) श्री विमलनाथ |
(७) श्री कुलपुत्रनाथ | (१५) श्री विपुलनाथ | (२३) श्री देवपालनाथ |
(८) श्री उदंकनाथ | (१६) श्री निर्मलनाथ | (२४) श्री अनंतवीर्यनाथ |
वर्तमान में अवसर्पिणी काल का पंचम काल चल रहा है। इससे पूर्व के चतुर्थ काल में भरत क्षेत्र में जो २४ तीर्थंकर हुए हैं, उन्हें ही वर्तमान २४ तीर्थंकर कहते हैं। इनके नाम व लांछन (चिन्ह) निम्न प्रकार हैं-
नाम | चिन्ह | नाम | चिन्ह |
(१ )श्री ऋषभदेव जी | बैल | (२) श्री अजितनाथ जी | हाथी |
(३) श्री संभवनाथ जी | घोड़ा | (४) श्री अभिनन्दननाथ जी | बंदर |
(५) श्री सुमतिनाथ जी | चकवा | (६) श्री पद्मप्रभ जी | कमल |
(७) श्री सुपार्श्वनाथ जी | साथिया | (८) श्री चन्द्रप्रभ जी | चन्द्रमा |
(९) श्री पुष्पदन्तजी | मगर | (१०) श्री शीतलनाथ जी | कल्पवृक्ष |
(११) श्री श्रेयांसनाथ जी | गैंडा | (१२) श्री वासुपूज्य जी | भैसा |
(१३) श्री विमलनाथ जी | शूकर | (१४) श्री अनन्तनाथ जी | सेही |
(१५) श्री धर्मनाथ जी | वङ्कादंड | (१६) श्री शान्तिनाथ जी | हिरण |
(१७) श्री कुंथुनाथ जी | बकरा | (१८) श्री अरनाथ जी | मछली |
१९) श्री मल्लिनाथ जी | कलश | (२०) श्री मुनिसुव्रतनाथ जी | कछुवा |
(२१) श्री नमिनाथ जी | नीलकमल | (२२) श्री नेमिनाथ जी | शंख |
(२३) श्री पार्श्वनाथ जी | सर्प | (२४) श्री महावीरस्वामी जी | सिंह |
भगवान के जन्म के १० अतिशय होते हैं जिनमें एक अतिशय उनके शरीर में शुभ १००८ चिन्ह होना है। सुमेरु पर्वत पर अभिषेक करते समय सौधर्म इन्द्र इनके दायें पैर के अँगूठे में चिन्ह (लांछन) देखता है और इस चिन्ह से ही तीर्थंकर की पहचान होती है। २४ तीर्थंकरों के ये चिन्ह अलग-अलग होते हैं जो सामान्यतया पशु-पक्षी आदि तिर्यंचों के होते हैं। इस चिन्ह से तीर्थंकर के पूर्व भव का कोई संबंध नहीं है। मूर्ति पर चिन्ह से यह मालूम हो जाता है कि यह मूर्ति कौन से तीर्थंकर की है। तीर्थंकरों के उपरोक्त चिन्हों में से साथियां, अर्द्धचन्द्र, कल्पवृक्ष, वज्रदण्ड, कलश तो अजीव हैं, कमल, नीलकमल और शंख एकेन्द्रिय जीव हैं और शेष १६ पंचेन्द्रिय जीव हैं।
तीर्थंकरों के वर्ण (Colours of Teerthankars)- वर्तमान चौबीसी के तीर्थंकरों के वर्ण निम्न प्रकार हैं-
श्वेत वर्ण वाले- | १. चन्द्रप्रभु | २. पुष्पदन्त |
लाल वर्ण वाले- | १. पद्मप्रभु | २. वासुपूज्य |
श्याम वर्ण वाले- | १. मुनिसुव्रतनाथ | २. नेमिनाथ |
हरित वर्ण वाले- | १. सुपार्श्वनाथ | २. पार्श्वनाथ |
स्वर्ण वर्ण वाले- | शेष १६ तीर्थंकर |
श्री ऋषभदेव, वासुपूज्य और नेमिनाथ तीर्थंकर पद्मासन से मोक्ष गये हैं और शेष २१ तीर्थंकर कायोत्सर्ग आसन (खड्गासन) से मोक्ष गये हैं।
बाल ब्रह्मचारी तीर्थंकर(Celibate Teerthankars)-वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ये पांच तीर्थंकर बाल ब्रह्मचारी थे और शेष का विवाह हुआ था।
तीन पदवी के धारी तीर्थंकर (Teerthankars with Three Ranks)- श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ और अरनाथ तीन-तीन पदवियों (तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव) के धारी थे।
अधिक नाम वाले तीर्थंकर (Teerthankars with More Names)-
वर्तमान २४ तीर्थंकरों में से ३ के नाम एक से अधिक हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
(१) भगवान ऋषभदेव को आदिनाथ व वृषभनाथ भी कहते हैं। ये आदि शुरू में हुए हैं, इस कारण इन्हें आदिनाथ कहते हैं और इनके वृषभ (बैल) का लांछन है, अत: इन्हें वृषभनाथ भी कहते हैं।
(२) भगवान पुष्पदंतनाथ का दूसरा नाम सुविधिनाथ है।
(३) भगवान महावीर के वीर-वर्धमान-सन्मति-महावीर और अतिवीर ये पाँच नाम हैं।
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस द्वारा (इक्षुरस) |
पिता | महाराज नाभिराय | केवलज्ञान | फाल्गुन कृ.११ |
माता | महारानी मरूदेवी | मोक्ष | माघ कृ.१४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | कैलाश पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री वृषभसेन आदि ८४ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण | मुनि | चौरासी हजार |
चिन्ह | बैल | गणिनी | आर्यिका ब्राह्मी |
आयु | चोरासी (८४ ) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख पचास हजार (३००००) |
अवगाहना | दो हजार (२००० ) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | आषाढ़ कृ. २ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | चैत्र कृ.९ | जिनशासन यक्ष | गोमुख देव |
तप | चैत्र कृ.९ | यक्षी | चक्रेश्वरी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | प्रयाग-सिद्धार्थवन, वट वृक्ष (अक्षयवट) |
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | साकेतनगरी के राजा ब्रह्म द्वारा (खीर) |
पिता | महाराज जितशत्रु | केवलज्ञान | पौष शु. ११ |
माता | महारानी विजय | मोक्ष | चैत्र शु.५ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री सिंहसेन आदि ९० |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | एक लाख (१०००००) |
चिन्ह | हाथी | गणिनी | आर्यिका प्रकुब्जा |
आयु | बहत्तर (७२) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख बीस हजार (३२००००) |
अवगाहना | अट्ठारह सौ (१८००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | ज्येष्ठ कृ. अमावस्या | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | माघ शु. १० | जिनशासन यक्ष | महायक्ष देव |
तप | माघ शु. ९ | यक्षी | रोहिणी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं सप्तपर्ण वृक्ष |
जन्म भूमि | श्रावस्ती (जिला-बहराइच) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | श्रावस्ती के राजा सुरेन्द्रदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराज दृढ़राज | केवलज्ञान | कार्तिक कृ.४ |
माता | महारानी सुषेणा | मोक्ष | चैत्र शु.६ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री चारूषेण आदि १०५ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | दो लाख (२०००००) |
चिन्ह | घोड़ा | गणिनी | आर्यिका धर्मार्या |
आयु | साठ (६०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख बीस हजार (३२००००) |
अवगाहना | सोलह सौ (१६००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | फाल्गुन शु.८ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | कार्तिक शु. १५ | जिनशासन यक्ष | त्रिमुखदेव |
तप | मगसिर शु.१५ | यक्षी | प्रज्ञप्तिदेवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं शाल्मलि वृक्ष |
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | साकेत नगरी के राजा इन्द्रदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराज स्वयंवरराज | केवलज्ञान | पौष शु. १४ |
माता | महारानी सिद्धार्था | मोक्ष | वैशाख शु.६ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री वज्रनाभि आदि १०३ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | तीन लाख (३०००००) |
चिन्ह | बंदर | गणिनी | आर्यिका मेरुषेणा |
आयु | पचास (५ ०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख तीस हजार छह सौ (३३०६००) |
अवगाहना | चौदह सौ (१४००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | वैशाख शु. ६ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | माघ शु. १२ | जिनशासन यक्ष | यक्षेश्वर देव |
तप | माघ शु. १२ | यक्षी | वज्रश्रृंखला देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं असन वृक्ष |
जन्म भूमि | अयोध्या (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | सौमनस नगर के राजा पद्म द्वारा (खीर) |
पिता | महाराज मेघरथ | केवलज्ञान | चैत्र शु.११ |
माता | महारानी सुमंगला देवी | मोक्ष | चैत्र शु.११ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री अमर आदि ११६ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | तीन लाख बीस हजार (३२००००) |
चिन्ह | चकवा | गणिनी | आर्यिका अनंतमती |
आयु | चालीस (४०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख तीस हजार (३३००००) |
अवगाहना | बारह सौ (१२००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | श्रावण शु.२ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | चैत्र शु. ११ | जिनशासन यक्ष | तुंबुरू देव |
तप | वैशाक शु.९ | यक्षी | पुरुषदत्ता देवी |
दीक्षा – केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं प्रियंगु वृक्ष |
जन्म भूमि | कौशाम्बी (जिला-कौशाम्बी) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | वर्द्धमान नगर के राजा सोमदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा धरणराज | केवलज्ञान | चैत्र शु..१५ |
माता | महारानी सुसीमा | मोक्ष | फाल्गुन कृ.४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री वज्रचामर आदि ११० |
देहवर्ण | पद्मरागमणि सदृश | मुनि | तीन लाख तीस हजार (३३००००) |
चिन्ह | लाल कमल | गणिनी | आर्यिका रतिषेणा |
आयु | तीस (३०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | चार लाख तीस हजार (४३००००) |
अवगाहना | एक हजार (१०००)हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | माघ कृ.६ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | कार्तिक कृ. १३ | जिनशासन यक्ष | कुसुमदेव |
तप | कार्तिक कृ.१३ | यक्षी | मनोवेगा देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | मनोहर वन (प्रभाषगिरि) एवं प्रियंगुवृक्ष |
जन्म भूमि | वाराणसी (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | सोमखेट नगर के राजा महेन्द्रदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सुप्रतिष्ठ | केवलज्ञान | फाल्गुन कृ.६ |
माता | महारानी पृथ्वीषेणा | मोक्ष | फाल्गुन कृ.७ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्रीबल आदि ९५ |
देहवर्ण | मरकतमणि सम (हरा) | मुनि | तीन लाख (३०००००) |
चिन्ह | स्वस्तिक | गणिनी | आर्यिका मीनार्या |
आयु | बीस (२०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख तीस हजार (३३००००) |
अवगाहना | आठ सौ (८००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | भाद्रपद शु. ६ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | ज्येष्ठ शु. १२ | जिनशासन यक्ष | वरनंदिदेव |
तप | ज्येष्ठ शु. १२ | यक्षी | काली देवी |
दीक्षा – केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं शिरीष वृक्ष |
जन्म भूमि | चन्द्रपुरी (जिला-बनारस) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | नलिन नगर के राजा सोमदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा लक्ष्मणा | केवलज्ञान | फाल्गुन कृ.७ |
माता | महारानी पृथ्वीषेणा | मोक्ष | फाल्गुन शु. ७ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री श्रीदत्त आदि ९३ |
देहवर्ण | कुंदपुष्प सम श्वेत | मुनि | ढाई लाख (२५००००) |
चिन्ह | चन्द्रमा | गणिनी | आर्यिका वरुणा |
आयु | दस (१०) लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख अस्सी हजार (३८००००) |
अवगाहना | छह सौ (६००) हाथ | श्रावक | तीन लाख (३०००००) |
गर्भ | चैत्र कृ. ५ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | पौष कृ. ११ | जिनशासन यक्ष | विजयदेव |
तप | पौष कृ. ११ | यक्षी | ज्वालामालिनी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सर्वर्तुकवन एवं नागवृक्ष |
जन्म भूमि | काकन्दी (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | शैलपुर के राजा पुष्पमित्र द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सुग्रीव | केवलज्ञान | कार्तिक शु.२ |
माता | महारानी जयरामा | मोक्ष | भाद्रपद शु.८ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री विदर्भ आदि ८८ |
देहवर्ण | कुंदपुष्प सम श्वेत | मुनि | दो लाख (२०००००) |
चिन्ह | मगर | गणिनी | आर्यिका घोषार्या |
आयु | दो लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख अस्सी हजार (३८००००)) |
अवगाहना | चार सौ (४००) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | फाल्गुन कृ.९ | श्राविका | पांच लाख (५०००००) |
जन्म | मगसिर शु.१ | जिनशासन यक्ष | अजित देव |
तप | मगसिर शु. १ | यक्षी | महाकाली देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | पुष्पकवन एवं नागवृक्ष |
जन्म भूमि | भद्रपुरी | प्रथम आहार | अरिष्ट नगर के राजा पुनर्वसु द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा दृढ़रथ | केवलज्ञान | पौष कृ. १४ |
माता | महारानी सुनन्दा | मोक्ष | आश्विन शु. ८ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री अनगार आदि ८१ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | एक लाख (१०००००) |
चिन्ह | श्रीवृक्ष (कल्पवृक्ष) | गणिनी | आर्यिका धरणा |
आयु | एक लाख पूर्व वर्ष | आर्यिका | तीन लाख अस्सी हजार (३८००००) |
अवगाहना | तीन सौ साठ (३६०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | चैत्र कृ. ८ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | माघ कृ. १२ | जिनशासन यक्ष | ब्रह्मेश्वर देव |
तप | माघ कृ. १२ | यक्षी | मानवी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं बेलवृक्ष |
जन्म भूमि | सिहपुरी (जिला-वाराणसी) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | सिद्धार्थ नगर के राजा नंद द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा विष्णुमित्र | केवलज्ञान | माघ कृ. अमावस |
माता | महारानी नन्दा | मोक्ष | श्रावण शु. १५ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री कुन्थु आदि ७७ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | चौरासी हजार (८४०००) |
चिन्ह | गैंडा | गणिनी | आर्यिका धारणा |
आयु | चौरासी (८४) लाख वर्ष | आर्यिका | एक लाख बीस हजार (१२००००) |
अवगाहना | तीन सौ बीस (३२०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | ज्येष्ठ कृ. ६ | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | फाल्गुन कृ. ११ | जिनशासन यक्ष | कुमार देव |
तप | फाल्गुन कृ. ११ | यक्षी | गौरी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | मनोहर उद्यान एवं तुुंबुरू वृक्ष |
जन्म भूमि | चंपापुर (जि.-भागलपुर) बिहार | प्रथम आहार | महानगर के राजा सुंदर द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा वसुपूज्य | केवलज्ञान | माघ शु.२ |
माता | महारानी जयावती | मोक्ष | भाद्रपद शु.१४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | चंपापुर (मंदारगिरि) |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री धर्म आदि ६६ |
देहवर्ण | पद्मरागमणि सदृश | मुनि | बहत्तर हजार (७२०००) |
चिन्ह | भैंसा | गणिनी | आर्यिका सेनार्या |
आयु | बहत्तर लाख (७२) वर्ष | आर्यिका | एक लाख छह हजार (१०६०००) |
अवगाहना | दो सौ अस्सी (२८०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | आषाढ़ कृ.६ | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | फाल्गुन कृ. १४ | जिनशासन यक्ष | षण्मुख देव |
तप | फाल्गुन कृ.१४ | यक्षी | गांधारी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | मनोहर उद्यान एवं कदंब वृक्ष |
जन्म भूमि | कांपिल्यपुरी (कंपिलाजी) जि. फरूक्खाबाद (उ.प्र.) | प्रथम आहार | नंदनपुर के राजा कनकप्रभ द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा कृतवर्मा | केवलज्ञान | माघ शु.६ |
माता | महारानी जयश्यामा | मोक्ष | आषाढ़ कृ. ८ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्रीमंदर आदि ५५ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | अड़सठ हजार (६८०००) |
चिन्ह | सूकर | गणिनी | आर्यिका पद्मा |
आयु | साठ (६०) लाख वर्ष | आर्यिका | एक लाख तीन हजार (१०३०००) |
अवगाहना | दो सौ चालीस (२४०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | ज्येष्ठ कृ.१० | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | माघ शु. ४ | जिनशासन यक्ष | पाताल देव |
तप | माघ शु. ४ | यक्षी | वैरोटी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं जामुन वृक्ष |
जन्म भूमि | अयोध्या (उ.प्र.) | प्रथम आहार | साकेत पुर के राजा विशाख द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सिहसेन | केवलज्ञान | चैत्र कृ. अमावस |
माता | महारानी जयश्यामा | मोक्ष | चैत्र कृ. अमावस |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री जय आदि ५० |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | छ्यासठ हजार (६६०००) |
चिन्ह | सेही | गणिनी | आर्यिका सर्वश्री |
आयु | तीस (३०) लाख वर्ष | आर्यिका | एक लाख आठ हजार (१०८०००) |
अवगाहना | दो सौ (२००) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | कार्तिक कृ.१ | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | ज्येष्ठ कृ.१२ | जिनशासन यक्ष | किन्नर देव |
तप | ज्येष्ठ कृ. १२ | यक्षी | अनंतमती देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं पीपल वृक्ष |
जन्म भूमि | रत्नपुरी (जिला फैजाबाद) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | पाटलिपुत्र नगर के राजा धन्यषेण द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा भानुराज | केवलज्ञान | पौष शु. १५ |
माता | महारानी सुप्रभा | मोक्ष | ज्येष्ठ शु. ४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री अरिष्टसेन आदि ४३ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | चौंसठ हजार (६४०००) |
चिन्ह | वज्रदंड | गणिनी | आर्यिका सुव्रता |
आयु | दस (१०) लाख वर्ष | आर्यिका | बासठ हजार चार सौ (६२४००) |
अवगाहना | एक सौ अस्सी (१८०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | वैशाख शु. १३ | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | माघ शु. १३ | जिनशासन यक्ष | किपुरुषदेव |
तप | माघ शु. १३ | यक्षी | मानसी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | शालवन एवं सप्तपर्ण |
जन्म भूमि | हस्तिनापुर (जि. मेरठ) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | मंदिरपुर के राजा सुमित्र द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा विश्वसेन | केवलज्ञान | पौष शु. १० |
माता | महारानी ऐरावती | मोक्ष | ज्येष्ठ शु. ४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | कुरु | समवसरण में गणधर | श्री चक्रायुध आदि ३६ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | बासठ हजार (६२०००) |
चिन्ह | हरिण | गणिनी | आर्यिका हरिषेणा |
आयु | एक लाख (१०००००) वर्ष | आर्यिका | आर्यिका-साठ हजार तीन सौ (६०३००) |
अवगाहना | एक सौ साठ (१६०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | भाद्रपद कृ. ७ | श्राविका | चार लाख (४०००००) |
जन्म | ज्येष्ठ कृ. १४ | जिनशासन यक्ष | गरुड़देव |
तप | ज्येष्ठ कृ. १४ | यक्षी | महामानसी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहस्राम्रवन एवं नंद्यावर्त वृक्ष |
जन्म भूमि | हस्तिनापुर (जि. मेरठ) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | हस्तिनापुर के राजा धर्ममित्र द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सूरसेन | केवलज्ञान | चैत्र शु. ३ |
माता | महारानी श्रीकांता | मोक्ष | वैशाख शु. १ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | कुरु | समवसरण में गणधर | श्री स्वयंभू आदि ३५ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | साठ हजार (६००००) |
चिन्ह | बकरा | गणिनी | आर्यिका भाविता |
आयु | पंचानवे हजार (९५०००) वर्ष | आर्यिका | साठ हजार तीन सौ पचास (६०३५०) |
अवगाहना | एक सौ चालीस (१४०) हाथ | श्रावक | दो लाख (२०००००) |
गर्भ | श्रावण कृ.१० | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | वैशाख शु. १ | जिनशासन यक्ष | गंधर्व देव |
तप | वैशाख शु. १ | यक्षी | जया देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं तिलक वृक्ष |
जन्म भूमि | हस्तिनापुर (जि. मेरठ) उत्तर प्रदेश | प्रथम आहार | चक्रपुर के राजा अपराजित द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सुदर्शन | केवलज्ञान | कार्तिक शु. १२ |
माता | महारानी मित्रसेना | मोक्ष | चैत्र कृ. अमावस्या |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | कुरु | समवसरण में गणधर | श्री कुंभार्य आदि ३० |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | पचास हजार (५००००) |
चिन्ह | मछली | गणिनी | आर्यिका यक्षिला |
आयु | चौरासी हजार (८४०००) वर्ष | आर्यिका | साठ हजार (६००००) |
अवगाहना | एक सौ बीस (१२०) हाथ | श्रावक | एक लाख साठ हजार (१६००००) |
गर्भ | फाल्गुन कृ.३ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | मगसिर शु.१४ | जिनशासन यक्ष | महेन्द्र देव |
तप | मगसिर शु. १० | यक्षी | विजया देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहेतुक वन एवं आम्र वृक्ष |
जन्म भूमि | मिथिलानगरी | प्रथम आहार | मिथिला नगरी के राजा नंदिषेण द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा कुंभराज | केवलज्ञान | पौष कृ. २ |
माता | महारानी प्रजावती | मोक्ष | फाल्गुन शु. ५ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री विशाख आदि २८ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | चालीस हजार (४००००) |
चिन्ह | कलश | गणिनी | आर्यिका बंधुषेणा |
आयु | पचपन हजार (५५०००) वर्ष | आर्यिका | पचपन हजार (५५०००) |
अवगाहना | सौ हाथ | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | चैत्र शु. १ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | मगसिर शु.११ | जिनशासन यक्ष | कुबेर देव |
तप | मगसिर शु. ११ | यक्षी | अपराजिता देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | श्वेतवन एवं अशोक वृक्ष |
जन्म भूमि | राजगृही (जिला नालंदा) बिहार | प्रथम आहार | राजगृह के राजा वृषभसेन द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सुमित्र | केवलज्ञान | वैशाख कृ. ९ |
माता | महारानी सोमा | मोक्ष | फाल्गुन कृ. १२ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | हरिवंश | समवसरण में गणधर | श्री मल्लि आदि १८ |
देहवर्ण | वैडूर्यमणि सदृश | मुनि | तीस हजार (३००००) |
चिन्ह | कछुआ | गणिनी | आर्यिका पुष्पदंता |
आयु | तीस हजार (३००००) वर्ष | आर्यिका | पचास हजार (५००००) |
अवगाहना | अस्सी (८०) हाथ | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | श्रावण कृ. २ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | वैशाख कृ. १२ | जिनशासन यक्ष | वरूण देव |
तप | वैशाख कृ. १० | यक्षी | बहुरूपिणी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | नील वन एवं चंपक वृक्ष |
जन्म भूमि | मिथिलानगरी | प्रथम आहार | वीरपुर नगर के राजा दत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा विजय | केवलज्ञान | मगसिर शु. ११ |
माता | महारानी वप्पिला (वर्मिला) | मोक्ष | वैशाख कृ. १४ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेदशिखर पर्वत |
वंश | इक्ष्वाकु | समवसरण में गणधर | श्री सुप्रभार्य आदि १७ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | आर्यिका मंगिनी |
चिन्ह | नीलकमल | गणिनी | आर्यिका पुष्पदंता |
आयु | दस हजार (१००००) वर्ष | आर्यिका | पैंतालीस हजार (४५०००) |
अवगाहना | साठ (६०) हाथ | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | आश्विन कृ.२ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | आषाढ़ कृ.१० | जिनशासन यक्ष | श्री विद्युत्प्रभ देव |
तप | आषाढ़ कृ.१० | यक्षी | चामुण्डी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | चैत्रवन एवं वकुलवृक्ष |
जन्म भूमि | शौरीपुरबटेश्वर (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | द्वारावती के राजा वरदत्त द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा समुद्र विजय | केवलज्ञान | आश्विन शु. १ |
माता | महारानी शिवादेवी | मोक्ष | आषाढ़ शु. ७ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | ऊर्जयंतपर्वत (गिरनार) |
वंश | हरिवंश | समवसरण में गणधर | श्री वरदत्त आदि ११ |
देहवर्ण | वैडूर्यमणि सदृश | मुनि | अठारह हजार (१८०००) |
चिन्ह | शंख | गणिनी | आर्यिका राजीमती (राजुलमती) |
आयु | एक हजार (१०००) वर्ष | आर्यिका | चालीस हजार (४००००) |
अवगाहना | चालीस (४०) हाथ | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | कार्तिक शु. ६ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | श्रावण शु. ६ | जिनशासन यक्ष | सर्वाण्हदेव |
तप | श्रावण शु. ६ | यक्षी | कूष्माण्डी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | सहस्राम्रवन एवं बांस वृक्ष |
जन्म भूमि | वाराणसी (उत्तर प्रदेश) | प्रथम आहार | गुल्मखेट नगर के राजा धन्य द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा अश्वसेन | केवलज्ञान | चैत्र कृ. ४ (१४) |
माता | महारानी वामादेवी (ब्राह्मी) | मोक्ष | श्रावण शु. ७ |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | सम्मेद शिखर पर्वत |
वंश | उग्रवंश | समवसरण में गणधर | श्री स्वयंभू आदि १० |
देहवर्ण | मरकतमणि सदृश (हरा) | मुनि | सोलह हजार (१६०००) |
चिन्ह | सर्प | गणिनी | आर्यिका सुलोचना |
आयु | सौ वर्ष (१००) | आर्यिका | छत्तीस हजार (३६०००) |
अवगाहना | नौ हाथ (९) | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | वैशाख कृ. २ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | पौष कृ. ११ | जिनशासन यक्ष | धरणेन्द्र देव |
तप | पौष कृ. ११ | यक्षी | पद्मावती देवी |
दीक्षा – वन एवं वृक्ष | अश्ववन एवं देवदारूवृक्ष |
जन्म भूमि | कुंडलपुर-जिला नालन्दा (बिहार) | प्रथम आहार | कूल ग्राम के राजा वकुल द्वारा (खीर) |
पिता | महाराजा सिद्धार्थ | केवलज्ञान | वैशाख शु. १० (ऋजुकूला नदी के तट पर) |
माता | महारानी प्रियकारिणी (त्रिशला) | मोक्ष | कार्तिक कृ. अमावस्या |
वर्ण | क्षत्रिय | मोक्षस्थल | पावापुरी |
वंश | नाथवंश | समवसरण में गणधर | श्री इन्द्रभूति आदि ११ |
देहवर्ण | तप्त स्वर्ण सदृश | मुनि | चौदह हजार (१४०००) |
चिन्ह | सिह | गणिनी | आर्यिका चन्दना |
आयु | बहत्तर (७२) वर्ष | आर्यिका | छत्तीस हजार (३६०००) |
अवगाहना | सात (७) हाथ (अरत्नि) | श्रावक | एक लाख (१०००००) |
गर्भ | आषाढ़ शु. ६ | श्राविका | तीन लाख (३०००००) |
जन्म | चैत्र शु. १३ | जिनशासन यक्ष | मातंग देव (गुह्यकदेव) |
तप | मगसिर कृ. १० | यक्षी | सिद्धायिनी देवी |
दीक्षा -केवलज्ञान वन एवं वृक्ष | षण्डवन (मनोहरवन) एवं साल वृक्ष |
जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप और पुष्करार्ध द्वीप में क्रमश: १, २ और २ ऐसे कुल ५ विदेह क्षेत्र हैं।
प्रत्येक विदेह क्षेत्र दो-दो भागों में बंटा हुआ है-पूर्व विदेह और पश्चिम विदेह। पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी और पश्चिम विदेह में सीतोदा नदी के बहने से इनके दो-दो भाग हो गये हैं। प्रत्येक भाग में क्रमश: ४ वक्षार पर्वत और ३ विभंगा नदियों के कारण उनके आठ-आठ भाग हो गये हैं जिन्हें देश भी कहते हैं। इस प्रकार एक विदेह क्षेत्र में ४ हिस्से और ३२ देश हैं। प्रत्येक देश में एक आर्यखण्ड व ५ म्लेच्छखण्ड हैं।
इन ३२ देशों के प्रत्येक आर्यखण्ड में अधिकतम १-१ तीर्थंकर हो सकते हैं और कम से कम चारों हिस्सों में १-१ तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार एक विदेह क्षेत्र में एक समय में अधिक से अधिक ३२ तीर्थंकर हो सकते हैं और कम से कम ४ तीर्थंकर होते हैं। इस प्रकार पाँचों विदेह क्षेत्रों में अधिक से अधिक १६० तीर्थंकर हो सकते हैं और कम से कम २० तीर्थंकर होते हैं।
विदेह क्षेत्र के प्रत्येक हिस्से में आठ-आठ देश हैं। प्रत्येक देश में अधिक से अधिक एक-एक तीर्थंकर हो सकते हैं अर्थात् एक हिस्से में एक समय में अधिकतम ८ तीर्थंकर हो सकते हैं।
जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तर की ओर जो ८ देश हैं, उनमें किसी एक में सीमंधर स्वामी विराजमान हैं, दक्षिण की ओर के ८ देशों में से किसी एक में युगमंधर स्वामी विराजमान हैं। इसी प्रकार सीतोदा नदी के उत्तर की ओर के आठ देशों में से किसी एक में बाहुस्वामी और दक्षिण की ओर के ८ देशों में से किसी एक में सुबाहुस्वामी विराजमान हैं। इसी प्रकार अन्य ४ विदेह क्षेत्रों में भी प्रत्येक में ४-४ तीर्थंकर विराजमान हैं।
इस प्रकार इन की संख्या २० से कम कभी नहीं होती है और ये बीस तीर्थंकर सदा विद्यमान रहते हैं। इसी वजह से इन्हें विद्यमान २० तीर्थंकर कहते हैं।
१. सीमंधर स्वामी (बैल) | २. युगमंधर स्वामी (हाथी) |
३. बाहु स्वामी (हिरण) | ४. सुबाहु स्वामी (बन्दर) |
५. संजात स्वामी (सूर्य) | ६. स्वयंप्रभ स्वामी (चन्द्रमा) |
७. ऋषभानन स्वामी (सिंह) | ८. अनन्तवीर्य स्वामी (हाथी) |
९. सूरिप्रभ स्वामी (वृषभ) | १०. विशाल प्रभ स्वामी (इन्द्र) |
११. वङ्काधर स्वामी (शंख) | १२. चन्द्रानन स्वामी (गो) |
१३. चन्द्रबाहु स्वामी (कमल) | १४. भुजंगम स्वामी (चन्द्रमा) |
१५. ईश्वर स्वामी (सूर्य) | १६. नेमिप्रभ स्वामी (सूर्य) |
१७. वीरसेन स्वामी (हाथी) | १८. महाभद्र स्वामी (चन्द्रमा) |
१९. देवयश स्वामी (स्वस्तिक) | २०. अजितवीर्य स्वामी (कमल) |
विदेह क्षेत्र के तीर्थंकर ५, ३ अथवा २ कल्याणकों वाले होते हैं।
जम्बूद्वीप में भरत, ऐरावत व विदेह क्षेत्र की क्रमश: १, १ और ३२ इस प्रकार कुल ३४ कर्मभूमियाँ और अढ़ाई-द्वीप में कुल १७० कर्मभूमियाँ होती हैं। इनमें प्रत्येक में एक काल में एक-एक तीर्थंकर हो सकते हैं। इस प्रकार किसी एक समय में होने वाले तीर्थंकरों की अधिकतम संख्या १७० है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान अजितनाथ के समय १७० तीर्थंकर हुए थे।