शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का अनादिनिधन शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। जहाँ से अनन्त तीर्थंकरों ने मोक्षप्राप्त किया है और अनन्तानन्त भव्य जीवों ने भी तपस्या करके इस पर्वतराज से निर्वाणधाम को प्राप्त किया है इसीलिए इसे सिद्धक्षेत्र के रूप में सदा से पूजने की परम्परा रही है। जैन समाज में जन्म लेने वाले प्रत्येक नर-नारी को अपने भव्यत्व की पहचान के लिए सम्मेदशिखर की यात्रा/वंदना करने की प्रेरणा विरासत में पूर्वजों के द्वारा प्राप्त होती है और उन्हें प्रारंभ से ही यह पंक्ति सिखाई जाती है- एक बार बंदे जो कोई , तांहि नरक पशु गति नहिं होई ।