‘‘यह शिलालेख महाराष्ट्र सरकार के सहयोग से नासिक प्रशासन के पी.डब्ल्यू.डी. विभाग ने विभिन्न चार स्थानों पर लगाया है। १. पर्वत की तलहटी (ऋषभदेव उद्यान) मेें, २. गाड़ी से जाने वाले मार्ग में पर्वत के प्रवेश द्वार (निकट शांतिनाथ उद्यान) पर, ३. पर्वत के मूर्ति स्थल पर तथा ४. प्राचीन जिनमंदिर, इन स्थानों पर लगाये गये हैं।’’
१. मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र जैन पुरातत्त्व का एक विश्व प्रसिद्ध दिगम्बर जैन तीर्थ है।
२. दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों के आधार पर यह पर्वत लाखों वर्ष प्राचीन है यहाँ से ९९ करोड़ दिगम्बर जैन महामुनियों ने तपस्या करके निर्वाण प्राप्त किया था।
३. इस पर्वत पर सुद-बुद गुफा आदि अनेक गुफाएँ हैं, जिनमें तीर्थंकर भगवन्तों की तथा पिच्छी-कमण्डलुधारी मुनिराजों की सैकड़ों प्रतिमाएं उत्कीर्ण की हुई हैं। ये सभी प्रतिमाएँ दिगम्बर मुद्रा वाली हैं।
४. मांगीतुंगी पर्वत पर दो चोटियाँ हैं। यह पर्वत समुद्रतल से ४३६६ फुट ऊँचाई पर स्थित है। इसकी वंदना हेतु भक्तजन प्राचीनकाल से यहाँ आकर ३६०० सीढ़ियों के द्वारा पैदल या डोली से जाते हैं।
५. सन् २०१६ में इस पर्वत पर भारत देश का एक विश्वप्रसिद्ध कीर्तिमान स्थापित किया गया है।
६. जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, ८२ वर्षीय आयु तथा ६३ वर्षीय दीक्षित (साध्वी) जीवन की साधना से पवित्र दिव्यशक्ति परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से यहाँ अखण्ड पाषाण में विश्व की सबसे ऊँची अर्थात् १०८फुट उत्तुंग दिगम्बर जैन प्रतिमा का निर्माण हुआ है। इससे पूर्व इतनी ऊँची जैन प्रतिमा का कोई इतिहास प्राप्त नहीं होता है।
७. यह प्रतिमा जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की खड्गासन मुद्रा में बनाई गई है।
८. इस प्रतिमा का निर्माण सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के विभिन्न परिवारों द्वारा दी गई दानराशि से किया गया है, जिसका कार्य ‘‘भगवान श्री ऋषभदेव १०८ फुट विशालकाय दिगम्बर जैन मूर्ति निर्माण कमेटी-मांगीतुंगी’’ द्वारा सम्पन्न कराया गया है।
९. जैनधर्म में चौबीस तीर्थंकर अर्थात् २४ भगवान माने गये हैं। जिनमें भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर हैं। इनका जन्म अयोध्या (उ.प्र.) में करोड़ों-करोड़ों वर्ष पहले हुआ है।
१०. जैनधर्म की यह मान्यता है कि युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने प्रजा को असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य, इन षट्कर्मों का उपदेश देकर जीवन यापन की कला सिखाई थी।
११. प्रतिमा निर्माण में संघस्थ शिष्या प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी एवं जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर के पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज का बहुमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।
१२. इस कार्य में मुख्यरूप से मूर्ति निर्माण कमेटी के अध्यक्ष कर्मयोगी पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी के कुशल नेतृत्व में वरिष्ठ पदाधिकारी डॉ. पन्नालाल पापड़ीवाल-पैठण, इंजी. सी.आर.पाटील-पुणे, जयचंद कासलीवाल-चांदवड़, अनिल जैन, प्रीतविहार-दिल्ली, एडवोकेट जम्मनलाल कासलीवाल-औरंगाबाद आदि का प्रशंसनीय सहयोग रहा है।
१३. इस प्रतिमा निर्माण की प्रेरणा परमपूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा सन् १९९६ में शरदपूर्णिमा के दिन समाज को प्राप्त हुई थी।
१४. इसके उपरांत प्रतिमा निर्माण के लिए पर्वत पर भव्य समारोहपूर्वक मार्च २००२ में शिलापूजन किया गया।
१५. शिलापूजन के पश्चात् कारीगरों द्वारा पर्वत को कांटने-छांटने का कार्य २०१२ तक चला और पर्वत पर निकाली गई अखण्ड पाषाण शिला में दिसम्बर २०१२ से जयपुर (राज.) के कुशल शिल्पियों द्वारा मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया, जो फरवरी २०१६ में पूर्णता को प्राप्त हुआ।
१६. यह प्रतिमा मांगी पर्वत के एक हिस्से में पूर्वाभिमुख निर्मित की गई है। इस स्थान का नाम ‘‘ऋषभगिरि’’ घोषित किया गया है।
१७. इस प्रतिमा का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव माघ शुक्ला तृतीया से दशमी, वीर निर्वाण संवत् २५४२ अर्थात् ११ फरवरी २०१६ से १७ फरवरी २०१६ तक सम्पन्न हुआ, जिसमें ११ फरवरी को झण्डारोहण, १२ फरवरी को यागमण्डल विधान तथा १७ फरवरी को मोक्षकल्याणक मनाया गया।
१८. पंचकल्याणक के उपरांत भगवान का महामस्तकाभिषेक महोत्सव हुआ, जिसमें १८ फरवरी २०१६ को इतिहास का प्रथम कलश एवं पंचामृत महामस्तकाभिषेक किया गया। यह महामस्तकाभिषेक ६ मार्च २०१६ तक प्रतिदिन आयोजित हुआ।
१९. इस महोत्सव में भारत देश ही नहीं अपितु अमेरिका आदि विदेशों से भी काफी संख्या में दिगम्बर जैन श्रावक-श्राविकाओं ने पधारकर भगवान के पूजा-अनुष्ठान व पंचामृत महामस्तकाभिषेक में भाग लिया।
२०. महोत्सव की अंतर्राष्ट्रीय भव्यता हेतु जैन समाज के साथ ही महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी सड़के , बिजली, पानी आदि अनेक जनसुविधाओं हेतु महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया गया।