तव्विजउत्तरभागे सिहरीणामेण चरमकुलसेलो। हिमवंतस्स सरिच्छं सयलं चिय वण्णणं तस्स२।।२३५५।।
णवरि विसेसो कूडद्दहाण देवाण देविसरियाणं। अण्णाइं णामाइं तिंस्स सिद्धो पढमकूडो।।२३५६।।
सिहरी हेरण्णवदो रसदेवीरत्तलच्छिकंचणया। रत्तवदी गंधवदी रेवदमणिकंचणं कूडं।।२३५७।।
एक्कारसकूडाणं पुह पुह पणुवीस जोयणा उदओ। तेसुं पढमे कूडे जििंणदभवणं परमरम्मं।।२३५८।।
सेसेसुं कुंडेसुं णियणियकूडाण णामसंजुत्ता। वेंतरदेवा मणिमयपासादेसुं विरायंति।।२३५९।।
इस क्षेत्र के उत्तरभाग में शिखरी नामक अन्तिम कुलपर्वत स्थित है। इस पर्वत का सम्पूर्ण वर्णन हिमवान् पर्वत के सदृश है।।२३५५।। विशेष यह है कि यहाँ कूट, द्रह, देव, देवी और नदियों के नाम भिन्न हैं। उस पर्वत पर प्रथम सिद्धकूट, शिखरी, हैरण्यवत, रसदेवी, रक्ता, लक्ष्मी, कांचन, रक्तवती, गन्धवती, रैवत (ऐरावत) और मणिकांचनकूट, इस प्रकार ये ग्यारह कूट स्थित हैं। इन ग्यारह कूटों की ऊँचाई पृथक़-पृथक़ पच्चीस योजन प्रमाण है। इनमें से प्रथम कूट पर परम रमणीय जिनेन्द्रभवन और शेष कूटों पर स्थित मणिमय प्रासादों में अपने-अपने कूटों के नामों से संयुक्त व्यन्तरदेव विराजमान हैं।।२३५६-२३५९।।