शिष्य गुरु के साथ पिता के समान व्यवहार करे। प्रज्ञयातिशयानो न गुरुमवज्ञायेत।
अधिक प्रज्ञावान होने पर भी शिष्य गुरु की अवज्ञा न करे। संदिहानो गुरुमकोपयन्ननापृच्छेत्।
संदेह होने पर शिष्य इस प्रकार से पूछे कि गुरु कुपित न हों।