पहली, दूसरी, तीसरी व चौथी पृथ्वी के सभी बिल एवं पांचवीं पृथ्वी के चार भागों में से तीन भाग (३/४) प्रमाण बिल अत्यन्त उष्ण होने से वहां रहने वाले जीवों को तीव्र गर्मी की पीड़ा पहुँचाने वाले हैं। पांचवीं पृथ्वी के अवशिष्ट १/४ भाग प्रमाण बिल तथा छठी और सातवीं पृथ्वी में स्थित नारकियों के बिल अत्यन्त शीत होने से वहां रहने वाले जीवों को भयानक शीत की वेदना देने वाले हैं।
नारकियों के उपर्युक्त ८४००००० बिलों में से ८२२५००० उष्ण एवं १७५००० बिल अत्यन्त शीत हैं।
यदि उष्ण बिल में मेरू के बराबर लोहे का शीतल पिंड डाल दिया जाए तो वह तल प्रदेश तक न पहुँच कर बीच में ही मैन (मोम) के टुकड़े के समान पिघल कर नष्ट हो जाएगा।
इसी प्रकार यदि मेरुपर्वत के बराबर लोहे का उष्ण पिंड शीत बिल में डाल दिया जाए तो वह भी तल प्रदेश तक न पहुँच कर बीच में ही नमक के टुकड़े के समान विलीन हो जायेगा।
बकरी, हाथी, घोड़ा, भैंस, गधा, ऊँट, बिल्ली सर्प और मनुष्यादिक के सड़े हुए माँस की गंध की अपेक्षा नारकियों के बिल अनंतगुणी दुर्गंध से युक्त हैं। स्वभावत: गाढ़ अंधकार से परिपूर्ण ये नारकियों के बिल क्रकच, कृपाण, छुरिका, खैर की आग, अति तीक्ष्ण सुई और हाथियों की चिंघाड़ से भी अत्यन्त भयानक हैं।