शुक्र युगल में १ इंद्रक है जिसका नाम शुक्र है उस शुक्र विमान के दक्षिण में दसवें श्रेणीबद्ध विमान में शुक्र इंद्र का उत्तम नगर है। जो ४०००० योजन विस्तृत है इसका प्राकार ४ योजन सहित, ४ योजन विस्तृत १२० योजन ऊँचा है, उसकी प्रत्येक दिशा में १४० गोपुरद्वार हैं। उन गोपुरद्वारों का विस्तार ५० योजन, ऊँचाई ४० योजन है। उस नगर में ३५ योजन जड़ से सहित, ७० योजन विस्तृत, ३५० योजन ऊँचा ‘शुक्र इंद्र’ का प्रासाद है। ‘वहाँ शुक्रेन्द्र की देवियों के प्रासाद ३० योजन जड़ वाले, ६० योजन विस्तृत ३०० योजन ऊँचे हैं। शुक्रेन्द्र की देवियाँ ८२५० हैं उनमें आठ अग्र देवियाँ हैं। और ‘नंदा’ नाम की वल्लभा देवी है।
शुक्र इंद्रक से उत्तर में दसवें श्रेणीबद्ध में ‘महाशुक्र इंद्र’ रहता है। उसकी वल्लभा का नाम ‘नन्दावती’ है इसका परिवार और नगर शुक्रेन्द्र के समान है।