स्तोकममीहं न चाद्भुतमस्ति न्यस्य समस्त परिग्रहसंगम्।
यत्क्षणतो दुरितस्य विनाशं ध्यानबलाज्जनयंति बृहन्त:।।
इसमें किंचित् मात्र भी आश्चर्य नहीं है कि बड़े पुरुष समस्त परिग्रह का त्याग करके ध्यान के बल से क्षण मात्र में समस्त पापों का नाश कर देते हैं।
अर्जितमत्युरुकालविधानादिन्धनराशिमुदारमशेषम्।
प्राप्य परं क्षणतो महिमानं किं न दहत्यनिल: कणमात्र:।।
क्या बहुत काल से इकट्ठी की हुई र्इंधन की बड़ी राशि को कणमात्र अग्नि अपनी विशाल महिमा से क्षणभर में भस्म नहीं कर देती है? अवश्य कर देती है।