आस्था और विश्वास पर ही सामाजिक एकता सहिष्णुता और सद्भावना का पोषण होता है और ज्ञान का शोधन एवं विकास निरंतर होता रहता है। इस धरा पर जब-जब आस्था एवं विश्वास को आघात पहुँचना शुरू हुआ तब-तब महान पुरुषों ने अवतार लेकर टूटते हुए विश्वास और खण्डित होती हुई आस्थाओं को पुनर्जीवित किया। भगवान वृषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर महावीर पर्यंत हजारों विभूतियों ने जन्म लेकर इस धरा को सहिष्णुता और सद्भावना से सराबोर किया। समस्त जीवों का उपकार हुआ और मनुष्य ने अपनी आत्मा से साक्षात्कार कर निर्वाण प्राप्त किया। विवादों से मुक्त वातावरण में ही सद्भावना-सहिष्णुता फलती-फूलती है और समाज में सुखद शांति का वातावरण विकसित होता है। सद्भावना के अभाव में मनुष्य के विचारों में चंचलता बढ़ती है जिससे अस्थिरता आती है और फिर धीरे-धीरे समाज में विखंडन और टूटन बढ़ती है। इसके परिणाम भयंकर रूप धारण कर आस्था और विश्वास को तोड़ते रहते हैं। समाज भ्रमित होकर कतिपय स्वार्थी तत्वों के मकड़जाल में उलझती रहती है। मूढ़ता और जड़ता इसी का कुफल है जिसे समाज को भुगतना पड़ता है। उपरोक्त प्रस्तावना लिखने का तात्पर्य मात्र इतना ही है कि पिछले कुछ वर्षों से समाज के कुछ कतिपय नामी गिरामी नेताओं ने लालची धनिक वर्ग को पद का लालच देकर उनके धन-बल पर अपनी सत्ता कायम करने के लिए कुछ बिकाऊ प्रतिष्ठाचार्यों, प्रवचनकर्ताओं और पंडितों द्वारा अपने-अपने पक्ष में प्रचार कराना शुरू कर दिया है। सबने अपना-अपना सत्य प्रचारित करना तो शुरू किया ही दूसरों को असत्य सिद्ध करने में ही जी-जान से जुट गये हैं। अब नौबत मारपीट और कोर्ट-कचहरी तक जा पहँुची है। झूठे सबूत और गवाह भी जुटाए जा रहे हैं। विडंबना देखिए। एक ओर तो भगवान महावीर की २६००वीं जन्मजयंती धूमधाम से उत्साहपूर्वक मनाने का आयोजन सभी सम्प्रदाय के जैनियों ने विश्वस्तर पर करने का संकल्प लिया और प्रांतीय एवं केन्द्रीय सरकारों से भी सहयोग लेने का प्रशंसनीय प्रयास किया। दिगम्बर, श्वेताम्बर समेत सभी उप-संप्रदायों ने आपसी सहयोग से कार्यक्रम बनाए और उत्तम प्रयास कर अपूर्व उत्साह समाज में जाग्रत किया। इसके लिए संयोजक, विद्वान और श्रेष्ठी वर्ग सभी प्रशंसा के पात्र बने। यह सराहनीय कार्य किया गया। परन्तु भगवान महावीर की जन्मस्थली को लेकर जिस प्रकार का प्रचार कतिपय नेताओं, विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा किया जा रहा है, उससे आम जनमानस भ्रमित हो रहा है और उसकी आस्था, विश्वास को गहरा आघात लगा है। स्थान शोध का विषय हो सकता है और शोध कार्य करना अच्छी बात है और ये शोध कार्य आगे भी होते रहेंगे। बस्तियों का उजड़ना फिर अन्यत्र बस जाना भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन होते रहना यह तो समय के साथ होता ही रहता है। इतना तो ध्यान विद्वानों, नेताओं और समाज के प्रतिष्ठित लोगों को रखना ही चाहिए कि महापुरुषों के और देवी-देवताओं के पूजा स्थलों के विषय में जनता की आस्था और विश्वास को ठेस न पहुँचाए। क्षेत्रों पर अधिकार करने और धार्मिक ट्रस्टों में पद हथियाने की होड़ में जनता की धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना मात्र अशोभनीय कृत्य ही नहीं, अपराध भी है। जिस कुण्डलपुर को आज तक लगातार २६०० वर्षों से भगवान महावीर की जन्मस्थली मानकर जैन श्रद्धापूर्वक वंदना, पूजा करते चले आ रहे हैं और जिस स्थान से आस्था और भक्ति-भाव प्रेरणा पाते रहे हैं, उसे नकारना कितना खतरनाक हो सकता है, इस पर भी इन प्रचारकों और शोध-कर्ताओं को सोचना चाहिए। कल कोई अन्य शोधकर्ता किसी तीसरी जगह को प्रमाणित करने लगे तो फिर क्या स्थिति बनेगी। नये-नये क्षेत्रों पर गिरियों, मंदिरों आदि का निर्माण तो हो ही रहा है। अन्त में विनयपूर्वक हाथ जोड़कर मैं यही प्रार्थना करूँगा कि वैशाली को जन्मभूमि कहकर समाज को भ्रमित करने और जन-जन की धार्मिक आस्थाओं को खण्डित करने का यह दुष्प्रचार शीघ्र ही समाप्त किया जाये।