जिसका आचरण हो सके, उसका आचरण करना चाहिए एवं जिसका आचरण न हो सके, उस पर श्रद्धा रखनी चाहिए। धर्म पर श्रद्धा रखता हुआ जीव भी जरा एवं मरण रहित मुक्ति का अधिकारी होता है। या देवे देवताबुद्धिर्गुरौ च गुरुतामति:। धर्मे च धर्मधी: शुद्धा, सम्यकश्रद्धानमुच्यते।।
वीतरागदेव में देव-बुद्धि का होना, सद्गुरु में गुरुबुद्धि का होना और सच्चे धर्म में धर्म—बुद्धि का होना सच्ची श्रद्धा कहलाती है।