समाधि का अभिलाषी तपस्वी श्रमण परिमित तथा एषणीय आहार की ही इच्छा करे, तत्त्वार्थ में निपुण (प्राज्ञ) साथी को ही चाहे और विवेकयुक्त अर्थात् विविक्त (एकान्त) स्थान में ही निवास करे। दानं पूजा मुख्य: श्रावकधर्मे न श्रावका: तेन विना। ध्यानाध्ययनं मुख्यो, यतिधर्मे तं बिना तथा सोऽपि।।
श्रावक धर्म में दान और पूजा मुख्य है जिसके बिना श्रावक नहीं होता तथा श्रमण धर्म में ध्यान व अध्ययन मुख्य हैं, जिसके बिना श्रमण नहीं होता।