वंदन शत शत बार है,
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका गर्भकल्याणक नमते, मिले सौख्य भण्डार है।।
अजितवीर्य…..।।
विद्युन्माली मेरु पश्चिम, विदेह नदि के उत्तर में।
पुरी अयोध्या पितु सुबोध नृप, प्रसू कनकमाला उर में।।
गर्भ बसे जगवंद्य नमूँ नित, मिले निजातम सार है।
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।।१।।
वंदन शत शत बार है,
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका जन्मकल्याणक नमते, मिले सौख्य भण्डार है।।
अजितवीर्य…..।।
श्री ह्री आदिक देवी नुत, माता से प्रभु का जन्म हुआ।
मेरू पर ले जा वैभवयुत, इंद्रों ने प्रभु न्हवन किया।।
कमल चिन्हयुत जिनवर नमते, हो जाते भव पार हैं।
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।।२।।
वंदन शत शत बार है,
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में,वंदन शत शत बार है।
जिनका तपकल्याणक नमते, मिले सौख्य भण्डार है।।
अजितवीर्य…..।।
अजितवीर्य प्रभु नाम रखा, इंद्रों ने पूजा भक्ति किया।
जब वैराग्य हुआ प्रभुवर को, लौकान्तिक सुर स्तवन किया।।
स्वयं प्रभू ने दीक्षा ली थी, नमत मिले भव पार है।
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।।३।।
वंदन शत शत बार है,
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका ज्ञानकल्याणक नमते, मिले सौख्य भण्डार है।।
अजितवीर्य…..।।
घोर तपश्चर्या कर प्रभु ने, घातिकर्म को दग्ध किया।
धनपति ने आकर भक्ती से, समवसरण झट बना दिया।।
अजितवीर्य श्री केवलि प्रभु का, समवसरण हितकार है।
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।।४।।
वंदन शत शत बार है,
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।
जिनका मोक्षकल्याणक नमते, मिले सौख्य भण्डार है।।
अजितवीर्य…..।।
सर्व अघाती कर्म नाश कर, मोक्षधाम में जायेंगे।
सिद्धिप्रिया शिवराज्य प्राप्त कर, शाश्वत काल बितायेंगे।।
मुनी गणाधिप भक्ती करके, पायेंगे सुखसार है।
अजितवीर्य प्रभु चरण कमल में, वंदन शत शत बार है।।५।।
—शंभु छंद—
जम्बूद्वीप के विदेहक्षेत्र में, चउ जिनवर विहरण करते हैं।
पूरब धातकि पश्चिम धातकि में, चउ चउ जिनवर राजत हैं।।
पूर्वापर पुष्करार्ध में भी, चउ चउ तीर्थंकर शोभ रहे।
इन बीस तीर्थंकर को नमते,कैवल्यज्ञानमति सौख्य लहें।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं जम्बूद्वीपविदेहक्षेत्र पूर्वधातकीखण्डद्वीप पश्चिमधातकीखण्ड-द्वीपसंबंधिविदेहक्षेत्र पूर्वपुष्करार्धद्वीप पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधिविदेहक्षेत्रस्थित-विद्यमान श्रीसीमंधर युगमंधर बाहु-सुबाहु संजातक स्वयंप्रभ ऋषभानन अनंतवीर्य सूरिप्रभ विशालकीर्ति वङ्काधर चंद्रानन चंद्रबाहु भुजंगम ईश्वरनाथ नेमिप्रभ वीरसेन महाभद्र देवयश अजितवीर्यनामविंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
जाप्य मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं श्रीसीमंधरादिविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।