-उपेन्द्रवङ्काा छंद-
स्तुत्या न तुष्यन् प्रददाति सौख्यं,
प्रद्वेषतो दु:खमपि प्रदत्ते।
तथाप्यरस्त्वं किल वीतराग:,
ह्यिंचत्यमाहात्म्यमत: स्तुवे त्वां।।१।।
-शंभु छंद-
अरनाथ ! स्वयं अरि कर्मों को, घाता अर्हत्पदवी पायी।
त्रिभुवन के नाथ उदर तिष्ठे, मित्रसेना माता हर्षायी।।
सुरपूज्य सुदर्शन जनक अहो, है धन्य हस्तिनापुरी अहा।
फाल्गुन वदि तीज गर्भ मंगल, मगसिर सुदि चौदस जन्म लहा।।१।।
मगसिर सित दशमी दीक्षा ली, बाह्याभ्यंतर तप तपते थे।
कार्तिक सित बारस के दिन में, केवलज्ञानी रवि चमके थे।।
चौरासि हजार वर्ष आयू, तनु इक सौ बीस हाथ सुन्दर।
मछली लाञ्छन युत कनक वर्ण, प्रभु कामदेव औ चक्रेश्वर।।२।।
शुभ चैत्र अमावस के प्रभुवर, सम्मेदाचल से मृत्युजयी।
निज भेद विज्ञान प्रगट करके, अपने को पाया आप सही।।
मैं भी प्रभु चरण कमल वंदूँ, यह कृपा प्रसाद मिले मुझको।
मैं केवल ‘‘ज्ञानमती’’ पाऊँ, मुझसे ही सिद्धि मिले मुझको।।३।।