-आर्यिका चन्दनामती
तर्ज-धीरे-धीरे बोल………..
रत्नदीप लेके प्रभु की आरती करूँ,
आरती करूँ प्रभु की आरती करूँ।
प्रभु ऋषभदेव तीर्थेश की, श्री बाहुबली भरतेश की।।रत्नदीप.।।
प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव युग की कथा।
उनके पुत्र भरत को प्रथम चक्री कहा।।
बाहुबली जी कामदेव भी थे प्रथम।
सबने शिवपद प्राप्त किया मुनिराज बन।।
प्रभु आरती, दुख टारती,
प्रभु ऋषभदेव तीर्थेश की, श्री बाहुबली भरतेश की।।रत्नदीप.।।१।।
यद्यपि इनका पिता-पुत्र संबंध है,
फिर भी तप कर हुए सभी निर्बन्ध हैं।
ये हम सबके लिए परम आदर्श हैं,
वीतराग पद जिनका परमादर्श है।।
प्रभु आरती, दुख टारती,
प्रभु ऋषभदेव तीर्थेश की, श्री बाहुबली भरतेश की।।रत्नदीप.।।२।।
मेरे मन के मोहतिमिर का नाश हो,
आरति करके मन में ज्ञान प्रकाश हो।
इसीलिए ‘‘चंदनामती’’ घृतदीप ले,
आरति बारम्बार जिनेश्वर की करें।।
प्रभु आरती, दुख टारती,
प्रभु ऋषभदेव तीर्थेश की, श्री बाहुबली भरतेश की।।रत्नदीप.।।३।।