(सप्तविभक्ति समन्वित)
-अनुष्टुप् छंद:-
आदिनाथो जगत्स्वामी, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:।
आदिनाथमहं नित्य-माश्रयामि हितेच्छया।।१।।
आदिनाथेन सृष्टि: स्यात्, षट्स्वकर्मविधायिनी।
आदिनाथाय मे नित्य-मनंतशो नमो नम:।।२।।
आदिनाथाद् जिनो धर्म:, गृहि-मुन्योर्द्विभेदत:।
आदिनाथस्य पुत्रास्ते, शतैका हि शिवंगता:।।३।।
आदिनाथे स्थिरा बुद्धि:, मे स्याद् भवान्तकारिणी।
हे आदिनाथ! मां रक्ष, भवाद् भव्यांश्च सर्वदा।।४।।
(२) श्री आदिनाथ स्तुति:
आदिनाथो युगस्रष्टा, त्वामादिनाथमाश्रये।
आदिनाथेन सृष्टि:, स्यादादिनाथाय ते नम:।।१।।
आदिनाथाद् दया धर्म:, आदिनाथस्य चिन्मह:।
आदिनाथे रुचिर्मेऽस्तु, भो आदिनाथ! रक्ष माम्।।२।।
(३) श्री ऋषभदेव स्तुति:
ऋषभोऽयं महादेव:, ऋषभमाश्रयाम्यहम्।
ऋषभेण कृता सृष्टि:, ऋषभाय नमो नम:।।१।।
ऋषभात् सार्वतीर्थोऽभूत्, ऋषभस्य वृषो दया।
ऋषभे कुरू सद्भक्तिं, ऋषभ! त्वं पुनीहि माम्।।२।।
(४) श्री ऋषभदेव स्तुति:
ऋषभो युगब्रह्मा त्वं, ऋषभमाश्रयाम्यहम्।
ऋषभेण हतो मृत्यु:, ऋषभाय नमो नम:।।१।।
ऋषभाज्जीवनोपाय:, ऋषभस्य वृषो दया।
ऋषभे स्यात् स्थिरा भक्ति:, पाहि मां ऋषभ! प्रभो!।।२।।
(५) श्री ऋषभदेव स्तुति:
श्रीऋषभो जगन्नाथ:, त्वां ऋषभं दधे हृदि।
ऋषभेण जितो मृत्यु:, ऋषभाय नमो नम:।।१।।
ऋषभाद् द्विविधो मार्ग:, ऋषभस्य वचोऽमृतं।
ऋषभेऽनंतसंपत्ति:, ऋषभेश्वर! पाहि माम्।।२।।