—सखी छंद—
पुष्कर में अपर विदेहा, सीतोदा नदि तट गेहा।
सुर वंदित नगरि सुसीमा, ‘गलसेन’ पिता की महिमा।।१।।
माँ ‘ज्वालामति’ सुत जन्में, सुर जन्ममहोत्सव कीने।
‘ईश्वरप्रभु’ नाम तुम्हारा, है सूर्य चिन्ह सुखकारा।।२।।
वैराग्य समाया मन में, दीक्षा धारी प्रभु वन में।
इंद्रों से पूजा पाई, हम वंदें मन हर्षायी।।३।।
प्रभु ध्यान धरा तरु तल में, केवलरवि प्रगटा निज में।
बारह गण को उपदेशा, हम वंदें भक्ति समेता।।४।।
परमानन्द पद पायेंगे, शिवपुरी प्रभू जायेंगे।
शत इंद्र करेंगे अर्चा, वंदत ही निज सुख मिलता।।५।।