अंसावलंबिना ब्रह्मसूत्रेणासौ दधे श्रियम्।
हिमाद्रिरिव गांङ्गेन स्रोतसोत्संगसंगिनाम्।।१९८।।
(महापुराण पर्व १५)
तन्नाम्ना भारतं वर्षमिति हासीज्जनास्पदं।
हिमाद्रेरासमुद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदं।।१५९।।
(महापुराण पर्व १५)
यही बात महापुराण में वर्णित है-‘‘कंधे पर लटकते हुये ‘यज्ञोपवीत’ से वे भरत सुशोभित हो रहे थे।’’ इन भरत के नाम से ही यह देश ‘भारत’ इस नाम से प्रसिद्ध हो रहा है। ‘‘इतिहास के जानने वालों का कहना है कि जहां अनेक आर्यपुरुष रहते हैं ऐसा यह हिमवान पर्वत से लेकर समुद्रपर्यंत का चक्रवर्तियों का क्षेत्र ‘भरत’ पुत्र के नाम से ‘भारत वर्ष’ इस नाम से प्रसिद्ध हुआ है।
वैदिक ग्रंथों के प्रमाण-
नित्यानुभूतनिजलाभ-निवृत्त-तृष्ण:।
श्रेयस्य तद्रचनया चिरसुप्तबुद्धे:
लोकस्य य: करुणयाभयमात्मलोक-
माख्यान् नमो भगवते ऋषभाय तस्मै।
(भाग०, ५ स्कंध, ६ अध्याय)
इन्हीं के पुत्र भरत के नाम से भारत वर्ष प्रसिद्ध हुआ-
‘‘येषां खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ: श्रेष्ठ गुण आसीद येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति।’’ (भाग०, ५ स्कंध, अ. ४)
वायुपुराण में ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर ही यह देश ‘भारत’ कहलाया। ऐसा कहा है-
नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मेरुदेव्यां महाद्युति:।
ऋषभं पार्थिवं श्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम्।।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्र शताग्रज:।
सोऽभिषिच्याथ भरत: पुत्रं प्राव्राज्यमास्थित:।।
हिमाह्वं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।
तस्माद् भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।।
(वायु पुराण ३१, ५०५२)
अभिप्राय यह है कि नाभिराज की पत्नी मेरुदेवी ने ऋषभ पुत्र को जन्म दिया। ऋषभ ने सौ पुत्रों में अग्रणी भरत को जन्म दिया और भरत का राज्याभिषेक कर स्वयं उन्हें हिमाचल से लेकर दक्षिण देश तक राज्य देकर स्वयं दीक्षा ले ली। इन्हीं भरत के नाम से यह देश ‘भारत’ कहलाया है।
इसी का समर्थन नृिंसह पुराण में है-
ऋषभाद् भरतो भरतेन चिरकालं धर्मेण पालितत्वादिदं भारतं वर्षमभूत्।
(नृिंसहपुराण ३०-७)
इसी प्रकार वैदिक संप्रदाय के अनेक ग्रंथों में नाभिराजा के पुत्र ऋषभदेव और ऋषभदेव के पुत्र भरत थे, उन्हीं के नाम से ‘भारत’ ऐसा माना है।
ऋग्वेद आदि वेदों में भी ऋषभदेव को तो माना ही है, कहीं-कहीं चौबीस तीर्थंकरों को भी स्वीकार किया है। यथा-
‘‘ॐ त्रैलोक्यप्रतिष्ठितान् चतुर्विंशतितीर्थकरान् ऋषभाद्यान् वर्द्धमानान्तान् सिद्धान् शरणं प्रपद्ये।’’ (ऋग्वेद)
ॐ तीन लोक में प्रतिष्ठित ऋषभदेव से लेकर वर्द्धमान पर्यंत चौबीस तीर्थंकरों की और सिद्धों की मैं शरण लेता हूँ ।