-दोहा-
परमपुरुष परमातमा, परमानन्द स्वरूप।
आह्वानन कर मैं जजूँ, कुंथुनाथ शिवभूप।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकर! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकर! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकर! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
-अष्टक-बसंततिलका छंद-
गंगानदी जल लिये त्रय धार देऊँ।
स्वात्मैक शुद्ध करना बस एक हेतू।।
श्री कुंथुनाथ पद पंकज को जजूँ मैं।
छूटूँ अनंत भव संकट से सदा जो।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर केशर घिसा कर शुद्ध लाया।
संसार ताप शमहेतु तुम्हें चढ़ाऊँ।।श्री कुंथु.।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
शाली अखंड सित धौत सुथाल भरके।
अक्षय अखंड पद हेतु तुम्हें चढ़ाऊँ।।श्री कुंथु.।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
बेला गुलाब अरविंद सुचंपकादी।
कामारिजित पद सरोरुह में चढ़ाऊँ।।श्री कुंथु.।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
लड्डू पुआ अंदरसा पकवान नाना।
क्षुध रोग नाश हित नेवज को चढ़ाऊँ।।श्री कुंथु.।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्पूर दीप लव ज्योति करें दशोंदिक्।
मैं आरती कर प्रभो निज मोह नाशूँ।।श्री कुंथु.।।६।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कृष्णागरू सुरभि धूप जले अगनि में।
संपूर्ण पाप कर भस्म उड़े गगन में।।श्री कुंथु.।।७।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
अंगूर आम फल अमृतसम मंगाके।
अर्पूं तुम्हें सुफल हेतु अभीष्ट पूरो।।श्री कुंथु.।।८।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
नीरादि अष्ट शुभद्रव्य सुथाल भरके।
पूजूँ तुम्हें सकल ‘‘ज्ञानमती’’ सदा हो।।श्री कुंथु.।।९।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकराय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-सोरठा-
कनकभृंग में नीर, सुरभित कमलपराग से।
मिले भवोदधितीर, शांतीधारा मैं करूँ।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
वकुल गुलाब सुपुष्प, सुरभित करते दश दिशा।
पुष्पांजलि से पूज, पाऊँ आतम निधि अमल।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
-दोहा-
श्रावण वदि दशमी तिथी, गर्भ बसे भगवान।
इंद्र गर्भ मंगल किया, मैं पूजूँ इत आन।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रावणकृष्णादशम्यां श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरगर्भकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
एकम सित वैशाख की, जन्में कुंथुजिनेश।
किया इंद्र वैभव सहित, सुरगिरि पर अभिषेक।।२।।
ॐ ह्रीं अर्हं वैशाखशुक्लाप्रतिपत्तिथौ श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरजन्मकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सित एकम वैशाख की, दीक्षा ली जिनदेव।
इन्द्र सभी मिल आयके, किया कुंथु पद सेव।।३।।
ॐ ह्रीं अर्हं वैशाखशुक्लाप्रतिपत्तिथौ श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरदीक्षाकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
चैत्र शुक्ल तिथि तीज में, प्रगटा केवलज्ञान।
समवसरण में कुंथुजिन, करें भव्य कल्याण।।४।।
ॐ ह्रीं अर्हं चैत्रशुक्लातृतीयायां श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरकेवलज्ञानकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपमीति स्वाहा।
सित एकम वैशाख की, तिथि निर्वाण पवित्र।
कुंथुनाथ के पदकमल, जजतें बनूँ पवित्र।।५।।
ॐ ह्रीं अर्हं वैशाखशुक्लाप्रतिपत्तिथौ श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरमोक्षकल्याणकाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-पूर्णार्घ्य (दोहा)-
श्री तीर्थंकर कुंथु जिन, करुणा के अवतार।
पूर्ण अर्घ्य से जजत ही, मिले सौख्य भंडार।।१।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्रीकुंथुनाथतीर्थंकरपंचकल्याणकाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलि:।