-आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—तन डोले………………..
गणधर स्वामी, अन्तर्यामी की मंगल दीप प्रजाल के,
मैं आज उतारूं आरतिया।टेक.।।
तीन न्यून नव कोटि मुनीश्वर, ढाई द्वीप में होते।
घोर तपस्या के द्वारा, निज कर्म कालिमा धोते।।गुरू जी।।
गणधर भी हैं, श्रुतधर भी हैं, इन मुनियों में सरताज वे
मैं आज उतारूं आरतिया।।१।।
वृषभसेन से गौतम तक हैं, तीर्थंकर के गणधर।
सबने ही वैâवल्य प्राप्त कर, पाया पद परमेश्वर।।गुरू जी…..
प्रभु दिव्यध्वनि, सुन करके मुनी, करते निज पर कल्याण हैं।
मैं आज उतारूं आरतिया।।२।।
गणधर के अतिरिक्त तपस्वी, मुनि भी ऋद्धी पाते।
उनको नमकर नर-नारी के, रोग, शोक नश जाते।।गुरू जी.।।
अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा ऋद्धी युत जो मुनिराज हैं।
मैं आज उतारूं आरतिया।।३।।
इन गणधर गुरु के चरणों में, शत वंदन करना है।,
कहे ‘‘चंदनामती’’ मुझे भी, शिवपथ पर चलना है।।गुरू जी.।।
ज्ञानी ध्यानी, श्रुत विज्ञानी, गुरू की आरति सुखकार है।
मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।