—सखी छंद—
श्री क्षेत्र विदेह अपर में, सीतोदा नदि उत्तर में।
पुरि पुण्डरीकिणी नृप के, घर में सुरत्न बरसे थे।।१।।
सुर मुकुट हिले जिन जन्में, प्रभु वृषभ चिन्ह धर जग में।
अठ एक हजार कलश से, जिन न्हवन किया सुर हरषें।।२।।
चंद्रानन नाम प्रसिद्धी, संसार सौख्य से विरती।
तप लिया स्वयं जा वन में, वंदत मिल जावे तप मे।।३।।
नानाविध तप तप करके, प्रभु शुक्लध्यान में तिष्ठे।
केवल रवि उगा प्रभू के, मैं नमूँ त्रिजग भी चमके।।४।।
प्रभु मृत्युञ्जयी बनेंगे, मुक्ती का राज्य करेंगे।
हम भक्ति भाव से वंदें, भव भव के दुख से छूटें।।५।।