तर्ज—अब न छुपाउँगा…….
दीपक जला के हम, थाल सजा के हम,
भक्ती करके हे माता, शक्ती कुछ पा लें हम।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया ।।टेक.।।
ये इस जग की गणिनी माँ, लगती जैसे ब्राह्मी माँ।
ज्ञानमती गणिनी माता, इनका जग से क्या नाता।।
इनके दर्शन को मन, आतुर रहता हरदम,
हो जाते जब दर्शन, खिल जाता अन्तर्मन।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया।।१।।
धर्म प्रेरणा देतीं ये, किसी से कुछ नहीं लेतीं ये।
सबसे निस्पृह रहती हैं, छत्तिस गुण को धरती हैं।।
जहाँ पड़ते चरण, होती धरती चमन,
दृष्टी जिस पर पड़ती, हो जाता वह पावन।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया ।।२।।
जम्बूद्वीप बनाया है, हस्तिनापुर चमकाया है।
तीर्थ अयोध्या जा करके, तीर्थोद्धार कराया है।।
प्रभु के चरणों में मन, रहता इनका हरदम,
हरदम कहती सबसे, आतम का हो चिन्तन।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया ।।३।।
पुत्री मानो जिनवर की, शिष्या वीरसिन्धु गुरु की।
ये चारित्रचन्द्रिका हैं, जिनवाणी की रक्षिका हैं।।
इनके प्रवचन से मन, उज्ज्वल होता हरदम,
जाने कितने पतितोें का, जीवन होता पावन।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया।।४।।
इनकी आरति करने से, नमन ‘‘चंदना’’ करने से।
मिथ्या कल्मष धुलते हैं, ज्ञान के चक्षू खुलते हैं।।
तन मन से ये निश्छल, देतीं ज्ञानमृत जल,
पीकर के ज्ञानामृत, नर तन होता सफल।
आओ करें मिल आज, माता की आरतिया ।।५।।