आवो हम सब करें वंदना, प्रभु के पंचकल्याण की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।टेक.।।
पश्चिम पुष्कर अपर विदेहे, सीतोदा के दक्षिण में।
श्रीभूती पितु गंगा देवी, मात सुसीमा नगरी में।।
गर्भ बसे प्रभु स्वप्न दिखाकर, पूजा गर्भकल्याण की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।१।।
मति श्रुत अवधि ज्ञानयुत, स्वस्तिक चिन्ह सहित प्रभु जन्मे थे।
मेरू पर जन्माभिषेक में, देव देवियाँ हर्षे थे।।
जन्मकल्याणक वंदन करते, मिले राह उत्थान की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।२।।
नाम देवयश रखा इंद्र ने, सब जन मन संतुष्ट हुये।
प्रभु को जब वैराग्य हुआ, इंद्रों ने आ संस्तवन किये।।
दीक्षा क्षण नमते मिल जावे, बुद्धि आत्मकल्याण की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।३।।
घाति चतुष्टय घात किया प्रभु, केवलज्ञान सूर्य प्रगटा।
समवसरण बन गया अधर में, धनद भक्ति में झूम उठा।।
गंधकुटी में किया सभी ने, पूजा केवलज्ञान की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।४।।
सर्व अघाती नाश मुक्ति-कन्या परणेंगे तीर्थंकर।
नाथ देवयश सौ इंद्रों नुत, मुनीवंद्य जगपूज्य प्रवर।।
जो निर्वाणकल्याणक वंदें, मिले राह निर्वाण की।
इंद्र सभी मिल भक्ती करते, तीर्थंकर भगवान की।। वंदे जिनवरं -४ ।।५।।