प्रस्तुत धर्मचक्र विधान परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की लघु भगिनी परम पूज्य चारित्रश्रमणी आर्यिका श्री अभयमती माताजी द्वारा लिखित एक अलौकिक कृति है | इस विधान में भगवान में समवसरण आदि का वर्णन है , समवसरण में धर्मचक्र सर्वाण्ह यक्ष के शिर पर सुशोभित रहता है | यह धर्मचक्र तीर्थंकर के विहार के समय आगे-आगे रहता है | इस विधान में ३२ पूजा, ४३८ अर्घ्य ,१४ पूर्णार्घ्य एवं ३२ जयमाला हैं | यह विधान सर्व सुखों को प्रदान करने वाला है जिसे करके सभी जन पाप का क्षय तथा पुण्य का संचय करें |