जैतिजै जैतिजै जैतिजै नेमकी, धर्म औतार दातार श्यौचैनकी।
श्रीशिवानंद भौफंद निकन्द ध्यावै, जिन्हें इंद्र नागेन्द्र ओ मैनकी।।
पर्मकल्यान के देनहारे तुम्हीं, देव हो एव तातें करों ऐनकी।
थापि हौ वार त्रै शुद्ध उच्चारत्रै, शुद्धताधार भौपारवूँâ लेनकी।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्र!अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
दाता मोक्षके, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।।टेक।।
निगम नदी कुश प्राशुक लीनौ, कंचनभृंग भराय।
मनवचतनतें धार देते ही, सकल कलंक नशाय।
दाता मोक्षके, श्रीनेमिनाथ जिनराय।।दाता.।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
हरिचन्दनजुत कदलीनन्दन, कुंकुम सङ्ग घसाय।
विघनताप नाशनके कारन, जजौं तिहारे पाय।।दाता.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।।
पुण्यराशि तुमजस सम उज्जल, तंदुल शुद्ध मंगाय।
अखय सौख्य भोगन के कारन, पुंज धरों गुनगाय।।दाता.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
पुण्डरीक तृणद्रुमको आदिक, सुमन सुगंधितलाय।
दर्पण मनमथभंजनकारन, जजहुँ चरन लवलाय।।दाता.।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।।
घेवर बावर खाजे साजे, ताजे तुरत मँगाय।
क्षुधावेदनी नास करनको, जजहुँ चरन उमगाय।।दाता.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
कनक दीप नवनीत पूरकर, उज्ज्वल जोति जगाय।
तिमिरमोहनाशक तुमकों लखि, जजहुँ चरन हुलसाय।।दाता.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
दशविध गंध मँगाय मनोहर, गुंजत अलिगन आय।
दशों बंध जारन के कारन, खेवों तुमढिग लाय।।दाता.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
सुरस वरन रसना मनभावन, पावन फल सु मंगाय।
मोक्षमहाफल कारन पूजों, हे जिनवर तुमपाय।।दाता.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
जलफलआदि साज शुचि लीने, आठों दरब मिलाय।
अष्टम छितिके राज करनको, जजों अंग वसु नाय।।
दाता मोक्षके, श्रीनेमिनाथ जिनराय, दाता मोक्ष के।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
-पाइता छंद-
सित कातिक छट्ठ अमंदा। गरभागम आनंदकन्दा।
शचि सेय सिवापद आई। हम पूजत मनवचकाई।।१।।
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लषष्ठ्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सित सावन छट्ठ अमन्दा। जनमें त्रिभुवन के चंदा।
पितु समुद महासुख पायो। हम पूजत विघन नशायो।।२।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठ्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
तजि राजमती व्रत लीनों। सित सावन छट्ठ प्रवीनों।
शिवनारि तबै हरषाई। हम पूजैं पद शिरनाई।।३।।
ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठ्यां तप:कल्याणकप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सित आश्विन एकम चूरे। चारों घाती अति कूरे।
लहि केवल महिमा सारा। हम पूजें पद अष्टप्रकारा।।४।।
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लप्रतिपदायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सितषाढ़ अष्टमी चूरे। चारों अघातिया कूरे।
शिव उर्ज्जयन्ततें पाई। हम पूजैं ध्यान लगाई।।५।।
ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लाष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-दोहा-
श्याम छवी तन चाप दश, उन्नत गुननिधिधाम।
शंख चिन्हपद में निरखि, पुनि पुनि करों प्रनाम।।१।।
-पद्धरी छंद (१६ मात्रा लघ्वन्त)-
जै जै जै नेमि जिनिन्द चंद। पितु समुद देन आनंदकन्द।
शिवमात कुमुदमनमोददाय। भविवृन्द चकोर सुखी कराय।।२।।
जयदेव अपूरव मारतंड। तम कीन ब्रह्मसुत सहस खंड।
शिवतियमुखजलजविकाशनेश। नहिं रहो सृष्टि में तम अशेष।।३।।
भविभीत कोक कीनों अशोक। शिवगम दरशायो शर्मथोक।
जै जै जै जै तुम गुनगंभीर। तुम आगम निपुन पुनीत धीर।।४।।
तुम केवल जोति विराजमान। जै जै जै जै करुना निधान।
तुम समवसरन में तत्त्वभेद। दरशायो जाते नशत खेद।।५।।
तित तमुकों हरि आनंदधार। पूजत भगतीजुत बहु प्रकार।
पुनि गद्यपद्यमय सुजस गाय। जै बल अनंत गुनवंतराय।।६।।
जय शिवशंकर ब्रह्मा महेश। जय बुद्ध विधाता विष्णुवेष।
जय कुमति मतंगनको मृगेन्द्र। जय मदनध्वांतकों रविजिनेन्द्र।।७।।
जय कृपासिंधु अविरुद्ध बुद्ध। जय रिद्धसिद्ध दाता प्रबुद्ध।
जय जगजनमन रंजन महान। जय भवसागरमहं सुष्टुयान।।८।।
तुव भगतिकरें ते धन्य जीव। ते पावैं दिव शिवपद सदीव।
तुमरो गुनदेव विविध प्रकार। गावत नित किन्नरकी जु नार।।९।।
वर भगतिमाहिं लवलीन होय। नाचैं ता थेइ थेइ थेइ बहोय।
तुम करुणासागर सृष्टिपाल। अब मोकों बेगि करों निहाल।।१०।।
मैं दुख अनंत वसुकरमजोग। भोगे सदीव नहिं और रोग।
तुमको जगमें जान्यों दयाल। हो वीतराग गुनरतनमाल।।११।।
तातें शरना अब गही आय। प्रभु करो वेगि मेरी सहाय।
यह विघनकरम मम खंडखंड। मनवांछितकारज मंडमंड।।१२।।
संसारकष्ट चकचूर चूर। सहजानंद मम उर पूर पूर।
निजपर प्रकाशबुधि देई देई। तजिके बिलंब सुधि लेई लेई।।१३।।
हम जांचत हैं यह बार बार। भवसागरतें मो तार तार।
नहिं सह्यो जात यह जगत दु:ख। तातैं विनवों हे सुगुनमुक्ख।।१४।।
-घत्तानंद-
श्रीनेमिकुमारं, जितमदमारं, शीलागारं सुखकारं।
भवभयहरतारं, शिवकरतारं, दातारं धर्माधारं।।१५।।
ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
-मालिनी (१५ वर्ण)-
सुखधनजससिद्धी पुत्रपौत्रादि वृद्धी।
सकल मनसि सिद्धी होतु है ताहि रिद्धी।।
जजत हरषधारी नेमि को जो अगारी।
अनुक्रम अरिजारी सो वरे मोच्छनारी।।१६।।
।। इत्याशीर्वाद:। पुष्पाजंलिं क्षिपेत्।।