-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज-लेके पहला-पहला प्यार……….।
जय जय नेमिनाथ भगवान, हम करते तेरा गुणगान,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।
करते प्रभु जग का कल्याण, तुमने पाया पद निर्वाण।
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।टेक.।।
राजुल को त्यागा प्रभु जी ब्याह न रचाया।
गिरनार गिरि पर जाकर योग लगाया।
प्राप्त हुआ फिर केवलज्ञान, दूर हुआ सारा अज्ञान,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।१।।
शिवा देवी माता तुमसे धन्य हुई थी।
शौरीपुरी की जनता पुलकित हुई थी।
समुद्रविजय की कीर्ति महान, गाई सुर इन्द्रों ने आन,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।२।।
सांझ सवेरे प्रभु की आरति उतारूँ।
तेरे गुण गाके निज के गुणों को भी पा लूँ।।
करे ‘चंदनामति’ गुणगान, होवे मेरा भी कल्याण,
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।३।।