आचार्य श्री मानतुंग स्वामी विरचित ‘भक्तामर स्तोत्र’ पर पूज्य अभयमती माताजी ने ‘सरस काव्य पद्यावली’ एवं पूजन मण्डल विधान लिखकर प्रदान किया है। भक्तामर स्तोत्र एक चमत्कारिक स्तोत्र है जिसकी रचना करके आचार्यश्री मानतुंग जी ने अपने ऊपर आए भयंकर उपसर्ग को दूर किया। एक-एक काव्य की रचना करके ४८ तालों को तोड़ दिया और भक्तामर स्तोत्र के प्रभाव से स्वत: वैâदखाने से मुक्त होकर बाहर आ गए। भगवान आदिनाथ की शासन देवी ‘चक्रेश्वरी’ माता उनकी बराबर रक्षा करती रहीं। राजा भोज के समय की घटना है। राजा भोज ने ही विद्वान कवि कालिदास के कहने से आचार्य प्रवर मानतुंंग को ४८ तालों के अंदर बंद करवा दिया था लेकिन आचार्यश्री का चमत्कार देखकर राजा भोज ने उनसे क्षमा मांगी और जैनधर्म को स्वीकार किया। आचार्य मानतुंग का चमत्कार देखकर सभी को उनके प्रति और स्तोत्र के प्रति अगाढ़ श्रद्धा उत्पन्न हो गई, तभी से अनेकों भक्तामर व्रत एवं नियम आदि लेकर अपने जीवन को सफल करने की परम्परा है।
प्रस्तुत पुस्तक में पूज्य माताजी ने भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद करके मंत्र, ऋद्धिमंत्र एवं भावार्थ लिखा है और फिर भक्तामर के ४८ काव्यों पर ४८ कथाएं हैं जिसे पढ़कर भक्तामर स्तोत्र के एक-एक पद को पढ़ने में अपार श्रद्धा एवं भक्ति उत्पन्न होती है। ४८ कथाओं को लिखने के बाद भक्तामर के १-१ काव्य पर १-१ चित्र दिया है। ऐसे ४८ चित्र भी इस पुस्तक में दिये हैं। पुन: भक्तामर की महिमा पर भजन, मंगल गीत, मंगल आरती लिखी है।
कर लो भक्तामर का पाठ, आत्म ज्योति जगे घट-घट मेंं,
जो शुद्ध विधी से कराया, मनवांछित फल को पाया।
कर लो विधान का ठाठ, मानो कर्म झड़े सब डर से।।……
इस प्रकार देखा जाए तो पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी ने अपने संयमी जीवन में काफी परिश्रम करके, कमजोर शरीर से भी साहित्यिक कार्य किया है। ग्रंथ रचना, काव्य रचना में अपने उपयोग को लगाकर समाज को अनेक कृतियाँ प्रदान की हैं।