भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस। दीक्षा ले शिवपद लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।२।। ॐ ह्रीं श्रीभरतचक्रवर्तिन: मोक्षप्राप्तविवर्द्धनादि-नवशतक-त्रयोविंशति-पुत्रेभ्य: अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।