तर्ज-नागिन धुन………….
जय वीरप्रभो, महावीर प्रभो, की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूं आरतिया।। टेक.।।
सुदी छट्ठ आषाढ़ प्रभू जी, त्रिशला के उर आए।
पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।।प्रभू जी.।।
कुण्डलपुर की, जनता हर्षी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।१।।
धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना।
चैत सुदी तेरस के दिन वहां, इन्द्र महोत्सव कीना।।प्रभू जी.।।
थे नाथ वंश, के भूषण तुम, बस एक मात्र अवतार थे,
मैं आज उतारूंं आरतिया।।२।।
यौवन में दीक्षा धारणकर, राजपाट सब त्यागा।
मगसिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा।।प्रभू जी.।।
बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिये मुक्ति के द्वार पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।३।।
शुक्ल दशमि बैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था।
गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था। प्रभू जी.।।
तब दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है,
मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।
पावापुरि सरवर में प्रभु ने, योग निरोध किया था।
कार्तिक कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था।। प्रभू जी.।।
निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में,
मैं आज उतारूं आरतिया।।५।।
वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर दो।
कहे ‘चन्दनामती’ हृदय में, ज्ञान की ज्योती भर दो।। प्रभू जी.।।
अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं,
मैं आज उतारूं आरतिया।।६।।