चतुर्थकाल में भगवान महावीर के समवसरण में श्री गौतमस्वामी ने महावीर स्वामी की स्तुति करते हुए श्री वीरभक्ति की रचना की थी। इस चतुर्थकालीन वीरभक्ति को पढ़ने से एवं इस श्री वीरभक्ति का व्रत करने से अनंंंतानंत पापों का नाश होगा, अनंतगुणा पुण्य का संपादन होगा।इस श्री वीरभक्ति के प्रभाव से आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग तो सरल होगा ही, साथ ही संसार के समस्त अभ्युदय-सुख प्राप्त होंगे। इस श्री वीरभक्ति के व्रत की महिमा बहुत ही महत्वपूर्ण है।
व्रत विधि-उत्तम विधि उपवास है। मध्यम विधि फल, रस आदि अल्पाहार है और जघन्य विधि एक बार शुद्ध भोजन-एकाशन करना है।
इस व्रत में भगवान महावीर स्वामी का अभिषेक करके भगवान महावीर की पूजा करें एवं श्री वीरभक्ति का पाठ अवश्य करें।
इस श्री वीरभक्ति व्रत में वृहत् मंत्र एवं लघु मंत्र दोनों प्रकार से हैं, जो वृहत् मंत्र की जाप्य न कर सकें, वे लघु मंत्र की भी जाप्य कर सकते हैं।
य: सर्वाणि चराचराणि विधिवद्-द्रव्याणि तेषां गुणान्।
पर्यायानपि भूतभाविभवत:, सर्वान् सदा सर्वदा।
जानीते युगपत् प्रतिक्षणमत:, सर्वज्ञ इत्युच्यते
सर्वज्ञाय जिनेश्वराय महते, वीराय तस्मै नम:।।१।।
वीर: सर्वसुरासुरेन्द्रमहितो, वीरं बुधा: संश्रिता:।
वीरेणाभिहत: स्वकर्मनिचयो, वीराय भक्त्या नम:।।
वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य वीरं तपो।
वीरे श्री द्युति-कान्ति-कीर्ति-धृतयो, हे वीर! भद्रं त्वयि।।२।।
ये वीरपादौ प्रणमन्ति नित्यं, ध्यानस्थिता: संयमयोगयुक्ता:।
ते वीतशोका हि भवन्ति लोके, संसारदुर्गं विषमं तरंति।।३।।
व्रतसमुदयमूल: संयमस्कन्धबन्धो,
यमनियमपयोभिर्वर्धित: शीलशाख:।
समितिकलिकभारो गुप्तिगुप्तप्रवालो,
गुणकुसुमसुगन्धि: सत्तपश्चित्रपत्र:।।४।।
शिवसुखफलदायी यो दयाछाययोद्य: (द्घ:),
शुभजनपथिकानां खेदनोदे समर्थ:।
दुरितरविजतापं प्रापयन्नन्तभावं,
स भवविभवहान्यै नोऽस्तु चारित्रवृक्ष:।।५।।
चारित्रं सर्वजिनैश्चरितं, प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्य:।
प्रणमामि पंचभेदं, पंचमचारित्रलाभाय।।६।।
धर्म: सर्वसुखाकरो हितकरो, धर्मं बुधाश्चिन्वते।
धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं, धर्माय तस्मै नम:।
धर्मान्नास्त्यपर: सुहृद्भवभृतां, धर्मस्य मूलं दया,
धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं, हे धर्म! मां पालय।।७।।
धम्मो मंगलमुद्दिट्ठं (मुक्किट्ठं), अिंहसा संयमो तवो।
देवा वि तस्स पणमंति, जस्स धम्मे सया मणो।।८।।
श्री वीरभक्ति का पद्यानुवाद
(गणिनी ज्ञानमती कृत)
(चौबोल छंद)
जो विधिवत् सब लोक चराचर, द्रव्यों को उनके गुण को।
भूत भविष्यत् वर्तमान, पर्यायों को भी नित सबको।।
युगपत समय-समय प्रति जाने, अत: हुए सर्वज्ञ प्रथित।
उन सर्वज्ञ जिनेश्वर महति, वीर प्रभु को नमूँ सतत।।१।।
वीर सभी सुर असुर इन्द्र से, पूज्य वीर को बुध सेवें।
निज कर्मों को हता वीर ने, नम: वीर प्रभु को मुद से।।
अतुल प्रवर्ता तीर्थ वीर से, घोर वीर प्रभु का तप है।
वीर में श्री द्युति कांति कीर्ति, धृति हैं हे वीर! भद्र तुममें।।२।।
जो नित वीर प्रभू के चरणों, में प्रणमन करते रुचि से।
संयम योग समाधीयुत हो, ध्यान लीन होते मुद से।।
इस जग में वे शोक रहित, हो जाते हैं निश्चित भगवन् ।
यह संसार दुर्ग विषमाटवि, इसको पार करें तत्क्षण।।३।।
व्रत समुदाय मूल है जिसका, संयममय स्कंध महान् ।
यम अरु नियम नीर से सिंचित, बढ़ी सुशाखाशील प्रधान।।
समिति कली से भरित गुप्तिमय, कोंपल से सुन्दर तरु है।
गुण कुसुमों से सुरभित सत्तप, चित्रमयी पत्तों युत है।।४।।
शिवसुख फलदायी यह तरुवर, दयामयी छाया से युत।
शुभजन पथिक जनों के खेद, दूर करने में समरथ नित।।
दुरित सूर्य के हुए ताप का, अन्त करे यह श्रेष्ठ महान् ।
वर चारित्र वृक्ष कल्पद्रुम, करे हमारे भव की हान।।५।।
सभी जिनेश्वर ने भवदु:खहर, चारित को पाला रुचि से।
सब शिष्यों को भी उपदेशा, विधिवत् सम्यक् चारित ये।।
पाँच भेद युत सम्यक् चारित, को प्रणमूँ मैं भक्ती से।
पंचम यथाख्यात चारित की, प्राप्ति हेतु वंदूँ मुद से।।६।।
धर्म सर्वसुख खानि हितंकर, बुधजन करें धर्म संचय।
शिवसुखप्राप्त धर्म से होता, उसी धर्म के लिए नमन।।
धर्म से अन्य मित्र नहिं जग में, दयाधर्म का मूल कहा।
मन को धरूँ धर्म में नित, हे धर्म! करो मेरी रक्षा।।७।।
धर्म महा मंगलमय है यह, कहा वीर प्रभु ने जग में।
प्रमुख अिंहसा संयम तपमय भी, धर्म सदा उत्तम सब में।।
जिसके मन में सदा धर्म है, सुरगण भी उसको प्रणमें।
मैं भी नमूं धर्म को संतत, धर्म बसो मेरे मन में।।८।।
-समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं श्री गौतमस्वामिप्रणीत-त्रैलोक्यत्रिकालवर्तिसर्वचराचरज्ञायक-गणधर-चक्रिदेवेन्द्रादिवंदितपादपद्मतीर्थंकर-वीरप्रभुवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
-प्रत्येक मंत्र (८)-
(१) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-त्रैलोक्यत्रिकालवर्ति-सर्वद्रव्यगुणपर्याययुग-पद्ज्ञायक-सर्वज्ञगुणविभूषिततीर्थंकर-महावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहा-स्तोत्राय नम:।
(२) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-सर्वसुरासुरेन्द्रपूजितातुलतीर्थप्रवर्तनगुण-विभूषित-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(३) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-निजचरणप्रणामकारक-संयतगणसंसाराट-वीपारकारकगुणविभूषित-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहा-स्तोत्राय नम:।
(४) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-व्रतमूलसंयमस्कंधतपश्चरणपत्रसमन्वित-चारित्रवृक्षप्रतिपादकतीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(५) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-शिवसुखफलदायि-शुभजनपथिकखेद-दूरकरणसमर्थचारित्रवृक्षप्रतिपादक-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
(६) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-सर्वजिनराज-आचरित-पंचविधचारित्रप्रति-पादकतीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(७) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-सर्वसुखाकर-शिवसौख्यदायक-दया-मूलधर्मप्रतिपादकतीर्थंकरमहावीरवंदना-समन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(८) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-उत्कृष्टमंगलमय-अहिंसासंयमतप:स्वरूप-देवगणनमस्कृत-धर्मप्रतिपादक-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
-समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं श्री गौतमस्वामिकृत-त्रैलोक्यत्रिकालज्ञायक-गणधरादिवंदित-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
-प्रत्येक मंत्र (८)–
(१) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-सर्वज्ञगुणविभूषिततीर्थंकरमहावीरवंदना-समन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(२) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-अतुलतीर्थप्रवर्तनगुणविभूषित-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
(३) ॐ ह्रीं श्री गौतमस्वामिकृत-भक्तगणपारकारकगुणविभूषिततीर्थंकर-महावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
(४) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-व्रतमूलयुतचारित्रवृक्षप्रतिपादकतीर्थंकर-महावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
(५) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-शिवसुखफलदायिचारित्रवृक्षप्रतिपादक-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।
(६) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-सर्वजिनाचरितपंचविधचारित्रप्रतिपादक-तीर्थंकरमहावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(७) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-दयामूलधर्मप्रतिपादकतीर्थंकरमहावीरवंदना-समन्विताय श्रीवीरभक्तिमहास्तोत्राय नम:।
(८) ॐ ह्रीं श्रीगौतमस्वामिकृत-देवगणनमस्कृतधर्मप्रतिपादकतीर्थंकर-महावीरवंदनासमन्विताय श्रीवीरभक्ति-महास्तोत्राय नम:।