मयूरगति छंद-(२३ अक्षरी)
सिद्धिवधूप्रियनाथ! जिनेश्वर! वीर! महागुणरत्नसुराशे!।
कुण्डलपू: त्रिशलाजननी बहुपुण्यवती सुरवृन्दनुतासीत्।।
मंगलदं भुवि हर्षकरं जिन! गर्भमवाप शुचौ सितषष्ठ्यां।
सन्मतिदेव! सदा मम सन्मतये भवतात् प्रणमामि मुदा त्वां।।१।।
तन्वी छंद-(२४ अक्षरी)
चैत्रसिते या, जिनजनिरभवत्, सा त्रययुक्तदशमदिवसे वै।
देवसुरेन्द्रै:, सुरगिरिशिखरे, जन्ममहोत्सवविधिरभिनीत:।।
मार्गसुकृष्णे, दशमितदिवसे, रत्नमहाव्रतगुणविधृतस्त्वं।
भूर्युपसर्गं भव इति विहित: ध्यानरतो नहि, विचलितचित्त:।।२।।
क्रौंचपदा छंद-(२५ अक्षरी)
घातिविघाती केवलबोध: स्फुरितसकलभुवि निजरविरुदित:।
माधवमासे१ शुक्लदशम्यां त्रिभुवनमिदमिति करतलफलवत्।।
श्रावण आद्ये गीस्तव दिव्या भविजनहृदयकमलमुदमकरोत्।
आयुरभूद् द्वासप्ततिवर्षास्तव जिनवर! मम भव शिवगतये।।३।।
तन्वी छंद-(२४ अक्षरी)
कार्तिकमासे शिवपदमगमत् कृष्णचतुर्दशदिवसनिशांते।
तीर्थसुपावापुरमिह भणितं सप्तकरोच्छ्रित इति कनकाभ:।।
बालयतिस्त्वं जिनवरचरमो मृत्युजयी खलु मृगपतिचिन्ह।
नौम्यतिवीरं शमदमकथकं वीरमनंतमतुलसुखराशिं।।४।।
स्यादिति वाद: सुवचनममृतं ते जिन! संसृतिगदमपहर्तृ।
मारजयी त्वं हरमदहरणो नाथसुवंशतिलक इह लोके।।
ज्ञानमतिश्री: झटिति भवतु मे भक्तिवशात् तव मुनिगणवंद्या।
स्वात्मजसिद्धिर्ध्रुवसुखजननी सन्मतिदेव! सकलविमलास्यात्।।५।।
अनुष्टुप् छंद- वर्धमानो महावीर:, श्रीमान् सिद्धार्थनन्दन:।
त्वत्संस्तुते: स्मृतेश्चापि, विघ्नौघ: प्रलयं व्रजेत्।।६।।
जीयाद्वीरजिनेन्द्रस्य, शासनं जिनशासनं।
प्रभवेत् वर्धमानस्य, धर्मचक्रं सदा भुवि।।७।।