-दोहा-
हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।
सम्मेदाचल मोक्ष थल, गाऊँ प्रभु गुणगान।।१।।
-स्रग्विणी छंद-
मैं नमूँ मैं नमूँ शांति तीर्थेश को।
नाथ मेरे हरो सर्व भवक्लेश को।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।२।।
विश्वसेन पिता मात ऐरावती।
वर्ष इक लाख आयू कनक वर्ण ही।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।३।।
देह चालीस धनु चिन्ह मृग ख्यात है।
जन्म भू हस्तिनापूरि विख्यात है।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।४।।
नाथ के समवसृति में सभा मध्य ये।
साधु बासठ सहस मूलगुणधारि थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।५।।
‘चक्रायुध’ प्रमुख गणपती श्रेष्ठ थे।
ऋद्धि संयुक्त छत्तीस मुनिज्येष्ठ थे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।६।।
आर्यिका हरीषेणा प्रधाना तथा।
साठ हज्जार त्रय सौ सभी आर्यिका।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।७।।
दोय लक्षा सुश्रावक प्रभू भाक्तिका।
चार लक्षा कहीं श्राविका सद्व्रता।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।८।।
सौख्य हेतू भटकता फिरा विश्व में।
किंतु पाई न साता कहीं रंच मैं।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।९।।
नाथ ऐसी कृपा कीजिए भक्त पे।
शुद्ध सम्यक्त्व की प्राप्ति होवे अबे।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।१०।।
स्वात्म पर का मुझे भेद विज्ञान हो।
पूर्ण चारित्र धारूँ जो निष्काम हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।११।।
पूर्ण शांती जहाँ पे वहीं वास हो।
भक्त ये आपका आपके पास हो।।
पूरिये नाथ मेरी मनोकामना।
फेर होवे न संसार में आवना।।१२।।
-दोहा-
तीर्थंकर चक्री मदन, तीनों पद के ईश।
पूर्ण ‘‘ज्ञानमति’’ हेतु मैं, नमूँ नमूँ नतशीश।।१३।।