-भुजंगप्रयात छंद-
सुरत्नत्रयै: सद्व्रतैर्भ्राजमान:। चतु:संघनाथो गणीन्द्रो मुनीन्द्र:।।
महा-मोह-मल्लैक-जेता यतीन्द्र:। स्तुवे तं सुचारित्रचक्रीशसूरिम्।।१।
भवव्याधिनाशाय दिग्वस्त्रधारी। भवाब्धे: तितीर्षु: जगद्दु:खहारी।।
भवातंकविच्छित्तयेहं श्रितस्वां। स्तुवे शांतिसिंधुं महाचार्यवर्यं।।२।।
महाग्रंथराजं सुषट्खण्डशास्त्रं। सुत्ताम्रस्य पत्रे समुत्कीर्णमेव।।
अहो! त्वत्प्रसादात् महाकार्यमेतत्। प्रजातं सुपूर्णं चिरस्थायि भूयात् ।।३।।
अनेके सुशिष्या: प्रसिद्धास्तवेह। स्तुवे वीरसिंधुं महाचार्यवर्यं।।
शिवािंब्ध च सूरिं गुणाब्धे: समुद्रं। मुदा पट्टसूरिं स्तुवे धर्मसिंधुम्।।४।।
महासाधवोऽप्याार्यिका: क्षुल्लकाद्या:। प्रसादात् हि ते श्रावकाद्याश्च जाता:।।
सुनक्षत्रवृंदैर्युतश्चंद्रमा: खे। सुसंघैर्युत: शांतिसूरि: स्तुवे त्वां।।५।।
महाकल्पवृक्षं महाचार्यरत्नं। कृपासागरं शांतिसज्ज्ञानमूर्तिम्।।
गभीरं प्रसन्नं महाधीरवीरं। महातीर्थभक्तं सदा त्वां प्रवन्दे।।६।।
-पृथ्वी छंद-
नमोऽस्तु मुनिचंद्र! ते भविकवैâरवाल्हादकृत्।
नमोऽस्तु मुनिसूर्य! ते जनमनोऽन्धकारांतकृत्।।
नमोऽस्तु गुरुवर्य! ते सकलभव्य-चिंतामणे!
जयेति जय सूरिवर्य! भुवि शांतिसिंधो! सदा।।७।।
श्रीशांतिसागराचार्यं, वंदे भक्त्या पुन: पुन:।
बोधिर्ज्ञानमती-सिद्धि-र्भूयात् मे पूर्णशांतिदा।।८।।