सरस्वती जगन्माता, जिनवक्त्राम्बुजा सती।
सरस्वती-मुपासन्ते, भक्त्या सर्वे मुनीश्वरा:।।१।।
सरस्वत्या भुक्तिं मुक्तिं, प्राप्नुवन्त्यपि भाक्तिका:।
सरस्वत्यै नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्य-मनन्तश:।।२।।
सरस्वत्या: बुधा: भेद-ज्ञानमप्याप्नुवन्ति च।
सरस्वत्या: प्रसादेन, तरन्ति भवसागरम्।।३।।
सरस्वत्यां मतिं धृत्वाऽ-हर्निशं स्वात्मचिन्तनम्।
सरस्वति! प्रसीद त्वं, मामनुगृह्य पालय।।४।।