-गीता छंद-
श्रीसुमति तीर्थंकर जगत में, शुद्धमति दाता कहे।
निज आतमा को शुद्ध करके, लोक मस्तक पर रहें।।
मुनि चार ज्ञानी भी सतत, वंदन करें संस्तवन करें।
हम भक्ति से नितप्रति यहाँ, प्रभु पद कमल वंदन करें।।१।।
-नाराचछंद-
नमो नमो जिनेन्द्रदेव! आपको सुभक्ति से।
मुनीन्द्रवृंद आप ध्याय कर्मशत्रु से छुटें।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।२।।
अनंतदर्श ज्ञान वीर्य सौख्य से सनाथ हो।
अनादि हो अनंत हो जिनेश सिद्धिनाथ हो।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।३।।
अनादिमोह वृक्ष मूल को उखाड़ आपने।
प्रधान राग द्वेष शत्रु को हना सु आपने।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।४।।
महान रोग शोक कष्ट हेतु औषधी कहे।
अनिष्ट योग इष्ट का वियोग दु:ख को दहे।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।५।।
अपूर्व चालिसे हि लाख पूर्व वर्ष आयु है।
सुतीन सौ धनुष प्रमाण तुंग देह आप हैं।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।६।।
सुचक्रवाक चिन्ह देह स्वर्ण के समान है।
तनू विहीन ज्ञानदेह सिद्ध शक्तिमान हैं।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।७।।
शतेन्द्र वृंद आपको सदैव शीश नावते।
गणीन्द्र वृंद आप को निजात्मा में ध्यावते।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।८।।
गणेश ‘अमर’ आदि एक सौ सुसोलहों सभी।
समस्त ऋद्धियों समेत आप भक्ति लीन ही।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।९।।
समस्त साधु तीन लाख बीस सहस संयमी।
निजात्म सौख्य हेतु नित्य स्वात्मध्यान लीन ही।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।१०।।
प्रधान आर्यिका अनंतमत्ति नाम धारती।
सुतीन लाख तीस सहस आर्यिका महाव्रती।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।११।।
जिनेश भक्त तीन लाख श्रावकों कि भीड़ है।
सुपाँच लाख श्राविका मिथ्यात्व से विहीन हैं।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।१२।।
असंख्य देव देवियाँ जिनेन्द्र अर्चना करें।
वहाँ तिर्यंच संख्य सर्व वैरभाव को हरें।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।१३।।
सुनी सुकीर्ति आपकी अतेव संस्तुती करूँ।
अनंत जन्म के अनंत पापपुंज को हरूँ।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।१४।।
जिनेन्द्र आप भक्ति से सदैव साम्य भावना।
सदैव स्वात्म ब्रह्म तत्त्व की करूँ उपासना।।
अनाथ नाथ! भक्त पे दया की दृष्टि कीजिए।
प्रभो! मुझे भवाब्धि से निकाल सौख्य दीजिए।।१५।।
-दोहा-
सुमतिनाथ! तुम भक्ति से, मिले निजातम शक्ति।
रत्नत्रय युक्ती मिले, पुन: ज्ञानमति मुक्ति।।१६।।