श्रीमान् सुमतिनाथस्त्वं, मोहध्वांतविनाशक:।
भव्या: सुमतिनाथं त्वां, भजंतीह सुबुद्धये।।१।।
श्रीमत्सुमतिनाथेन, हता: कर्मारय: स्वयं।
तस्मै सुमतिनाथाय, नम: स्वकर्महानये।।२।।
तीर्थं सुमतिनाथाद् यत्, तत् सर्वेषां सुखावहं।
श्रीमत् सुमतिनाथस्य, शरण्यं चरणद्वयं।।३।।
तस्मिन् सुमतिनाथे हि, मतिं स्थिरां करोम्यहं।
प्रभो! सुमतिनाथ! त्वं, देहि मे पंचमीं गतिं।।४।।