श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र वागोल पार्श्वनाथ बीसपंथी मंदिर, वागोल-कुशलगढ़ (राज.) में अवस्थित है। यह क्षेत्र केशरियाजी से १५० किमी., नागफणी पार्श्वनाथ से १३० किमी. एवं अन्देश्वर पार्श्वनाथ से २० किमी. दूर है। दाहोद-बांसवाड़ा हाइवे के भीलकुंआ ग्राम से २५ किमी. की दूरी पर यह स्थित है। अतिशय क्षेत्र पर आने-जाने के लिए कुशलगढ़, बांसवाड़ा से सीधी रोडवेज बस सुविधा उपलब्ध है। अतिशय क्षेत्र अन्देश्वर के लिए मुम्बई-दिल्ली बड़ी लाइन के रेलवे स्टेशन दाहोद, थान्दला रोड तथा रतलाम जंक्शन से वाया कुशलगढ़, कलिंजरा, भीलकुंआ के लिए सीधी बस सेवा उपलब्ध है। यह अतिशय क्षेत्र वागोल ग्राम में हिरन नदी के तट पर स्थित है। यह क्षेत्र राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं गुजरात राज्य की सीमाओं के नजदीक स्थित है जहाँ सम्पूर्ण भारत से जैन-जैनेतर यात्री तीर्थ के दर्शन हेतु आते हैं और दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं। भगवान वागोल पार्श्वनाथ की श्यामवर्ण चमत्कारी मूर्ति संवत् १६१७ में भट्टारक सुमतकीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित की गई। िंकवदन्ती है कि भगवान वागोल पार्श्वनाथ का पाषाण कलशयुक्त मंदिर भट्टारक महाराज द्वारा आकाशगामिनी विद्या के बल से अन्यत्र स्थान से लाकर वागोल ग्राम में स्थापित किया गया। ‘सब विघ्न निवारे, सुख विस्तारे, तुम चरणन शीश धरूँ’ उक्त युक्ति को चरितार्थ करता यह अतिशय क्षेत्र भक्तजनों को अपनी ओर आकर्षित कर सबकी मनवांछित इच्छाओं को कल्पवृक्ष की भांति पूर्ण करता है। संतानहीन को संतान प्राप्ति, दुखी को सुख और हर कठिनाइयों से मुक्ति प्राप्त होती है। मूर्ति पर प्रशस्ति (लेख) अंकित है जिसके अनुसार संवत् १६१७ में यह भट्टारक सुमतकीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित की गई है। क्षेत्र का संचालन दिगम्बर जैन दशा हूमड़ पंच बीसपंथी समाज, कुशलगढ़ द्वारा किया जाता है। क्षेत्र पर उपलब्ध सुविधाएँ- क्षेत्र पर यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला उपलब्ध है। वार्षिक मेला- चैत्र शुक्ला एकम पर ध्वजारोहण व विविध कार्यक्रमों के साथ वार्षिक मेले का आयोजन होता है जिसमें जैन समाज के साथ ही हजारों की संख्या में आदिवासी समाज व अन्य धर्मावलम्बी सम्मिलित होते हैं।