
चौबिस जिनपद प्रथम नमि, दुतिय सुगणधर पाय। 
क्षीर उदधि समान निर्मल तथ मुनि चित सारसो। 
मलय चंदन लाय सुंदर गंध सों अलि झंकरै। 
इन्दु किरण समान सुन्दर जोति मुक्ता की हरैं। 
पाटल गुलाब जुही चमेली मालती बेला घने। 
अर्ध चन्द्र समान फेनी मोदकादिक ले घने। 
मणि दीप ज्योति जगाय सुन्दर वा कपूर अनूपकं। 
चंदन सु कृष्णागरु कपूर मंगाय अग्नि जराइये। 
दाडिम सु श्रीफल आम्र कमरख और केला लाइये। 


वृषभ जिनेश्वर आदि अंत महावीर जी। 
परम उत्कृष्ट परमेष्ठी पद पाँच को। 
भवनवासी देव व्यंतर ज्योतिषी कल्पेन्द्र जू। 
चौबीसों जिन चरण नमि, गणधर नाऊँ भाल। 