प्रश्न-भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में कितने गणधर थे ? उत्तर-भगवान महावीर स्वामी के समवसरण में ग्यारह गणधर थे।
प्रश्न २-भगवान महावीर के प्रमुख गणधर का क्या नाम था ? उत्तर-भगवान महावीर के प्रमुख गणधर का नाम इन्द्रभूति गौतम था।
प्रश्न ३-इन्द्रभूति गौतम का जन्म कहाँ हुआ था ? उत्तर-बिहार प्रान्त में ब्राह्मणपुर नामक नगर में इन्द्रभूति गौतम का जन्म हुआ था।
प्रश्न ४-गौतम के माता-पिता का क्या नाम था ? उत्तर-गौतम के पिता का नाम शाण्डिल्य एवं माता का नाम स्थण्डिला था।
प्रश्न ५-शाण्डिल्य के कितने पुत्र थे ? उत्तर-तीन पुत्र थे।
प्रश्न ६-तीनों के नाम बताएं ? उत्तर-गौतम, गाग्र्य और भार्गव। इनमें से गौतम और गाग्र्य स्थण्डिला के पुत्र थे एवं शाण्डिल्य की द्वितीय पत्नी केशरी से भार्गव पुत्र का जन्म हुआ था। बाद में ये ही तीनों क्रम से इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। प्रश्न ७-इन्द्रभूति गौतम के कितने शिष्य थे ? उत्तर-इन्द्रभूति गौतम के पाँच सौ शिष्य थे। इनके दोनों भाई (अग्निभूति-वायुभूति) भी पाँच सौ-पाँच सौ शिष्यों के गुरु थे।
प्रश्न ८-ये लोग अपने शिष्यों को किन विषयों का अध्ययन कराते थे? उत्तर-ये लोग अपने शिष्यों को वेद-वेदांग का अध्ययन कराते थे। तीनों भाईयों को अपने ज्ञान का बहुत बड़ा अहंकार था। इसलिए महाज्ञानी होते हुए भी वे मिथ्यादृष्टि थे। तीनों में इन्द्रभूति सर्वाधिक ज्ञानी माने जाते थे।
प्रश्न ९-पुन: उनके जीवन में परिवर्तन कैसे आया ? उत्तर-एक दिन इन्द्रभूति गौतम की पाठशाला में सौधर्म इन्द्र एक वृद्ध मनुष्य का रूप धारण करके कुछ प्रश्न पूछने आये थे।
प्रश्न १०-इन्द्र ने गौतम से क्या प्रश्न किया था ? उत्तर-तीन काल कौन से होते हैं ? छह द्रव्य कौन से हैं ? नवपदार्थ कौन से हैं ? जीव का वास्तविक स्वरूप क्या है ? षट्काय कौन से हैं ? लेश्या कितनी होती हैं ?……..इत्यादि प्रश्न पूछकर इन्द्र ने कहा कि पण्डित जी! मैं इनका उत्तर भूल गया हूँ और मेरे गुरु महावीर मौन हैं इसलिए मैं आपसे इनका उत्तर पूछने आया हूँ।
प्रश्न ११-अवधिज्ञानी सौधर्म इन्द्र इन प्रश्नों का उत्तर पूछने इन्द्रभूति गौतम के पास क्यों गये ? उत्तर-इसमें एक रहस्य छिपा था कि भगवान महावीर को केवलज्ञान होने के बाद ६६ दिन बीत गये और उनकी दिव्यध्वनि नहीं खिर रही थी तो इन्द्र ने अपने अवधिज्ञान से जाना कि महावीर को एक समर्पित शिष्य की आवश्यकता है। उसे ही खोजने के लिए उन्होंने इन्द्रभूति गौतम को सर्वाधिक योग्य समझा और प्रश्नों का बहाना लेकर वे उनके पास आये थे।
प्रश्न १२-प्रश्न सुनकर इन्द्रभूति ने वृद्ध से क्या कहा ? उत्तर-प्रश्न सुनकर इन्द्रभूति ने कहा कि यदि मैंने उत्तर दे दिया, तो तुम क्या दोगे। वृद्ध वेषधारी इन्द्र ने कहा कि आप उत्तर दे दोगे तो मैं आपका शिष्य बन जाऊँगा। अन्यथा तुम्हें मेरे गुरु महावीर का शिष्य बनना पड़ेगा। तब इन्द्रभूति ने यह बात स्वीकार कर ली।
प्रश्न १३-फिर इन्द्रभूति ने उन प्रश्नों के क्या उत्तर दिये ? उत्तर-इन्द्रभूति तो उन प्रश्नों को सुनकर ही चकरा गया। उसे इनके उत्तर समझ में ही नहीं आ रहे थे, तब उसने युक्तिपूर्वक कहा कि बाबा! चल मैं तेरे प्रश्नों का उत्तर तेरे गुरु के सामने ही बताकर उनसे शास्त्रार्थ करूँगा।
प्रश्न १४-पुन: इन्द्र उन्हें कहाँ ले गये ? उत्तर-इन्द्र तो इस इंतजार में ही थे कि गौतम मेरे गुरु महावीर स्वामी के पास चले। फिर उसके कहते ही इन्द्र उन्हें उनके पाँच सौ शिष्यों के साथ लेकर राजगृही नगरी की ओर चल दिये। वहाँ विपुलाचल पर्वत पर स्थित समवसरण के मानस्तंभ को देखते ही गौतम का मान गलित हो गया और उन्होंने ‘‘जयति भगवान् हेमाम्भोजप्रचारविजृंभिता’’ इत्यादि चैत्यभक्ति की रचना करते हुए भगवान महावीर की शिष्यता कर ली। अर्थात् समवसरण में दिगम्बर मुनि दीक्षा ग्रहण कर उनके प्रमुख गणधर बन गये और भगवान की दिव्यध्वनि सुनकर उन्होंने श्रावण कृष्णा एकम् के दिन अन्तर्मुहूर्त में द्वादशांग की रचना कर दी।
श्री गौतम गणधर वाणी अध्याय-१
प्रश्न १-श्री गौतम गणधर स्वामी ने चैत्यभक्ति में सर्वप्रथम भगवान महावीर की क्या विशेषताएँ बताई हैं ? उत्तर-उन्होंने चैत्यभक्ति में महावीर स्वामी की निम्न विशेषताएँ बताई हैं-
(१) आपके चरण कमलों के नीचे इन्द्र स्वर्ण कमलों की रचना करते हैं।
(२)आपके चरणों में देव अपने मुकुट झुकाकर जब नमस्कार करते हैं तो उनके मुकुटों की मणियाँ आपके चरण से स्पर्शित होती हैं।
(३)आपके पाद सन्निधि में आकर जन्मजात विरोधी जीव भी अपनी स्वाभाविक व्रूरता छोड़कर परस्पर में प्रेमभाव धारण कर लेते हैं।
प्रश्न २-श्री गौतम स्वामी ने चैत्यभक्ति में किस प्रकार के धर्म को नमन किया है ? उत्तर-जो कुगति (नरक-तिर्यंय गति) और कुमार्ग (मिथ्यात्व मार्ग) से निकालकर प्राणियों को मोक्ष जैसा महान सुख प्राप्त कराता है। व्यवहार एवं निश्चयनय को प्रसंगानुसार मुख्य या गौण करके वस्तुतत्त्व का कथन करता है, ऐसे जिनवचनरूप अमृतमयी धर्म को गौतम स्वामी ने चैत्यभक्ति में नमन किया है।
प्रश्न ३-चैत्यभक्ति में गौतम स्वामी ने मुख्यरूप से कितने देवताओं को नमस्कार किया है ? उत्तर-नवदेवताओं को नमस्कार किया है।
प्रश्न ४-उन नवदेवताओं के नाम बताओ जो चैत्यभक्ति में कहे हैं ? उत्तर-श्री गौतम स्वामी ने चैत्यभक्ति में नवदेवताओं के नाम इस प्रकार बताए हैं ?
अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये नवदेवता मुझे इष्ट बोधि प्रदान करें।
प्रश्न ५-चैत्यभक्ति में कहाँ-कहाँ के जिनबिम्बों को नमस्कार किया है ? उत्तर-चैत्यभक्ति में श्री गौतम स्वामी ने तीनों लोकों में रहने वाले चारों निकाय के देवों के भवनों में स्थित जिनबिम्बों को नमस्कार करते हुए कहा है-
भवनवासि व्यन्तर ज्योतिष, वैमानिक में सुरलोक में ये।
जिनभवनों की त्रिभुवन वन्दित, जिनप्रतिमा को वन्दूँ मैं।।८।।
प्रश्न ६-चैत्यभक्ति में केवल अकृत्रिम प्रतिमाओं को ही नमन किया है अथवा कृत्रिम प्रतिमाओं को भी नमस्कार किया है ? उत्तर-श्री गौतम स्वामी ने अकृत्रिम के साथ कृत्रिम प्रतिमाओं को भी चैत्यभक्ति के ११वें श्लोक में नमस्कार किया है-
द्युतिकर जिनगृह में अकृत्रिम, कृत्रिम अप्रमेय द्युतिमान।
नर सुर पूजित भुवनत्रय के, सब जिन बिंब नमूँ गुणखान।।११।।
प्रश्न ७-चैत्यभक्ति में जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमाओं में क्या विशेषताएँ कहीं हैं ? उत्तर-चैत्यभक्ति के १३वें श्लोक में जिनप्रतिमा की विशेषताएँ बताते हुए श्री गौतम स्वामी ने कहा है- जो आयुध, विकार एवं आभूषणों से रहित हैं, अपने ही स्वभाव में स्थित हैं तथा कान्ति में अतुलनीय हैं, ऐसी कृतकृत्य जिनेश्वरों की प्रतिमाओें को पाप की शांति के लिए नमस्कार करता हूँ–
आयुध विक्रिय भूषा विरहित, जिनगृह में प्रतिमा प्राकृत।
कांती से अनुपम हैं कल्मष, शांति हेतु मैं नमूँ सतत।।१३।।
प्रश्न ८-व्यंतर एवं ज्योतिषी देवों के विमानों में कितनी जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं ? उत्तर-श्लोक नं. १९-२० के अनुसार व्यंतर एवं ज्योतिषी देवों के विमानों में असंख्यात जिनप्रतिमाएँ हैं, उन सबको गौतम स्वामी ने दोष नाश के लिए एवं आत्म वैभव की प्राप्ति हेतु नमस्कार किया है।
ये व्यन्तरविमानेषु, स्थेयांसः प्रतिमागृहाः।
ते च संख्यामतिक्रान्ताः, सन्तु नो दोषविच्छिदे।।१९।।
ज्योतिषामथ लोकस्य, भूतयेऽद्भुतसम्पदः।
गृहाः स्वयंभुवः सन्ति, विमानेषु नमामि तान्।।२०।।
व्यंतर के विमान में जिनगृह, उनमें अकृत्रिम प्रतिमा।
संख्यातीत कही हैं वंदूँ, दोष नाश के हेतु सदा।।१९।।
ज्योतिष देवों के विमान में, अद्भुत संपत्युत जिनगेह।
स्वयंभुवा प्रतिमा भी अगणित, उन्हें नमूँ निज वैभव हेतु।।२०।।
प्रश्न ९-चैत्यभक्ति में अर्हन्तदेव के धर्मतीर्थ को किसी उपमा प्रदान की गई है ? उत्तर-अर्हन्तदेव के तीर्थ को महानदी की उपमा प्रदान करते हुए श्री गणधर भगवान ने २३वें श्लोक में कहा है कि-
त्रिभुवन भविजन तीर्थस्नान से, पापों का क्षालन करते।।२३।।
अर्हन्त भगवान के अलौकिक तीर्थरूपी महानदी में तीनों लोकों के भव्य जीव अपने पापों के क्षालन हेतु स्नान करते हैं।
प्रश्न १०-चैत्यभक्ति के अनुसार चारों निकाय के देव अकृत्रिम प्रतिमाओं का अभिषेक किस प्रकार करते हैं ? उत्तर-चैत्यभक्ति की अंचलिका में कहा है कि चारों निकाय के देव दिव्य गंध, दिव्य पुष्प, दिव्यधूप, दिव्य चूर्ण आदि से नित्यप्रति दिव्य न्हवन करते हैं।